रंगश्री का नाटक ‘जय हो गिरगिट महाराज’ की प्रस्तुति
“आरे यार ! आज 1 फरवरी है न । आज तो रंगश्री का नाटक ‘ जय हो गिरगिट महाराज’ की प्रस्तुति देखने जानी है ।” मैनें पैर में जुतें पहनते हुए पत्नी की ओर मुहँ करके बोला । आॅफिस जाने की तैयारी में था । पत्नी ने तुनक कर व्यंग्य शब्दों की तीर चलाई । – “ गिरगिट जैसा तो आप ख़ुद हीं दिखते हैं । कभी अपने आप को भी देख लिया कीजिए । रंग बदलना तो कोई आपसे सिखे “। ईधर मैं और कुछ सुनने के मुड़ में नही था । वैसे सुनकर भी क्या कर लेता ? बात को अनसुना कर सीढ़ियों से उतरने लगा । जेब से मोबाईल निकाल कर समय देखा । सुबह के सात बजकर चालीस मिनट हो रहे थे । आज फिर दस मिनट देर था । एक किलोमीटर दूर मैट्रो स्टेशन तक पहुँचने के लिए लंबी-लंबी डेग भरने लगा ।
आॅफिस से सीधे शाम छह बजकर तीस मिनट पर मुक्त धारा आॅडिटोरियम पहुँचा । गेट पर हीं एक दोस्त राजकुमार से मुलाक़ात हुई । दोनों साथ में अन्दर प्रवेश हुए । लेखक – निर्देशक महेन्द्र प्रसाद सिंह से भेंट हुई । फिर हमलोगों ने अपनी-अपनी कुर्सी पर आसन हुए । गिरगिट महाराज को देखने के लिए आतुर हुए ।
कुछ हीं पलों में नाटक आरम्भ । सभी अपने – अपने मोबाईल को मौन मुड़ में करने लगे ।
हाॅल और मंच पर घना अँधेरा हुआ । फिर मंच के सबसे आगे का हिस्सा प्रकाशित हुआ । सभी पात्र अपने – अपने जगह पर नाचने लगे । नेपथ्य से गीत-संगीत गूँज उठा- ‘ जय गिरगिट महाराज की – जय गिरगिट महाराज की …‘। मै मन ही मन में मुस्कुराया । वाह ! शुरूआत तो बहुत अच्छी है ।
ईधर-ऊधर की बातें न करके मैं आपको सिधे नाटक के विषय वस्तु का दृश्य दिखाता हूँ । गिरगिट महाराज सरकारी प्रतिष्ठान में एक आदर्शवादी युवक की कहानी है । युवक का नाम महेश है । कड़ी मेहनत और कर्तव्य का निर्वाह करते हुए प्रगति की सीढ़ियाँ चढ़ता है । मज़दूर से प्रोन्नत होकर अधिकारी के पद पर सुशोभित होता है । इस क्रम में उसे कितने चापलूसों और निकम्मों से मुलाक़ात होती है । कितने राह में रोड़े बन कर खड़े होते हैं । कितनों ने टाँग खींचने की कोशिश की । साथी कमर्चारी भी वैसे थे, जो सामने आने पर जी हजूरी । बाद में गाली की बौछारें थोक में दिया करते । महेश को सारे साथी कर्मचारी गिरगिट की तरह रंग बदलते दिखाई दे रहे थे ।
दरअसल दफ़्तरों की राजनीति हीं कुछ ऐसी होती है । जो जितना बड़ा चापलूस उसकी उतनी हीं चाँदी । साहब -मैडम की चमचागिरी करो और मालाई मारो । चमचागिरी नही करने वाले सबसे पीछे खड़े दिखाई देते है । तरक़्क़ी उनसे कोसो दूर होती है । कुछ लोग अपने मेहनत के बल पर उन्हें धराशायी कर आगे बढ़ जाते हैं । गिरगिट महाराज जैसे लोग जीवन भर रंग बदलने में हीं उलझे रह जाते है ।
महेश की ईमानदारी दलालों – जनसेवकों , साठ -गाँठ करने वाले कमर्चारियो को रास नही आती । वह इन गिरगिटों से लोहा लेता रहा । परिणाम स्वरूप उसी के अधिकारी उसपर घुस लेने के आरोप लगाता है । ईमानदार अधिकारी महेश के किरदार को गौरव प्रकाश ने अपने अभिनय से प्रकाशित किया ।
बीच-बीच में सुत्रधार की बागडोर भी संभालने में तत्पर्यता दिखाई । यूँ कहें कि दर्शकों को अपने अभिनय की डोर से बाँधे रखा कलाकार गौरव प्रकाश ने ।
जे.एम. शुक्ला विभागाध्यक्ष की भूमिका में दिखें । जो काम कम अपनी कविता ज़्यादा सुनाते हैं अपने साथी कमर्चारियों को । उपेन्द्र सिंह चौधरी की अभिनय में वही दम दिखा, जो नाटक का माँग थी । उन्होंने एक तरफ रामसुन्दर बनकर तालियाँ बटोरी । दूसरी तरफ जनसेवक यानी नेता के रोल में फिट दिखें ।
दोहरी भूमिका में अखिलेश कुमार पाण्डेय भई खूब जमे । एक जगह लल्लन बनकर कुर्सी सँभाली । तो दूसरी जगह गंगा प्रसाद बनकर क्लर्क के रोल करते नजर आये । सौमित वर्मा भी कहाँ कम थे । भूमिका छोटी हो या बड़ी देखने वालों के मांसिक पटल पर छा हीं जाते हैं । हमेशा अपने अभिनय क्षमता का विस्तार करते हुए देखे जाते हैं । नेता और शर्मा का अभिनय ईमानदारी पूर्वक निभाया । यानी गिरगिट का सही रूप से हम भी अवगत हुए ।
आपको बता दूँ जय हो गिरगिट महाराज का एक किरदार नायर भी है । साऊथ इंडियन का ईमानदार ऑफ़िसर होता है । आये दिन ऑफ़िस में दबंगों से दो-चार होनी पड़ती है । लचारों की फ़रियाद सुननी पड़ती है । नायर की भूमिका अदा करते हुए लवकान्त सिंह दिखे । दक्षिण भारतीय अभिनय का रोल और संवाद से दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब रहें । हम सोंच रहें थे नायर फिर आएगा । हमें फिर से हंसाएगा पर अफ़सोस नही आया ।
अन्य महिला बनकर वीणा वादिनी चौबे भी तो नही आई । नायर (लवकान्त) और महिला (वीणा वादिनी) का संवाद हम दर्शकों को खुब गुदगुदी कराया ।
नगर प्रशासक दीपक कुमार सिंह , किरपाल की भूमिका में राजेश , पाण्डेय बने रूस्तम कुमार तो अर्जुन ने सिन्हा साहब बनकर अपने अभिनय के जलवा से सबको परिचय कराया ।
गिरगिट की कमान परंतय ने सँभाली । जो पड़ोसन अपने पड़ोसी को बॉलकनी से सम्मोहित करते हुए दिखी वह थी किरण अरोरा । अभिनय की अदा से समां बाँधते हुए हम दर्शकों को भी नही छोड़ी । अपने होंठलाली की लाली से सभी का दिल गुलाबी करती रही ।
धीरज कुमार ने विनोद राय और दबंग , जें. एम. शुक्ला ने रामकिशोर की भूमिका में दिखाई दिये । सुरज सिंह मेहरा बने चन्दुलाल और आकाश बहुगुणा ने अजय बन नाटक को अहम बनाया । गिरगिट दलाल का अभिनय राम गणेश श्याम भी अपने जगह सही थे । महतो बनकर मुन्ना कुमार भी तालियाँ बटोरने में सफल रहें ।
जय गिरगिट महाराज नाटक संगीत के रस से सराबोर है । नाटक की शुरूआत और अंत भी संगीत से हीं होती है । बीच-बीच में भी हम ताल और लय से आनंदित होतें । संगीत का रस राजा सिंह और उनकी टीम बरसा रहे थे । वहीं दूसरी ओर कोरस में महेन्द्र सिंह, सौमित वर्मा, अखिलेश, दीपक और रविकान्त ने साथ दिया।
“ इस रंग बदलती दुनिया में
मुश्किल है किसिका रंग बताना
यहाँ कौन खरा या खोटा है
हर चेहरा लिए मुखौटा है ,
सीख आपसे राज
दीखते भलमानस से बाज
बोलिए “ जय गिरगिट महाराज “
मंच पर प्रकाश महेन्द्र प्रसाद सिंह ने बिखेरा । स्टेज को सजाया तारक सरकार ने । वस्त्र सज्जा का भार सुचित्रा के कन्धे पर था । मीना राय ने मेक-अप किया सभी कलाकारों को ।
रंगश्री के बारे में-
रंगश्री 2013 से दिल्ली में भोजपुरी नाट्य उत्सव कराती आ रही है । अबतक चार पाँच दिवसीय नाट्य उत्सव का सफल आयोजन हो चुका है । संस्था ने 2010 भोजपुर , बिहार के दस पंचायतों में भी गई । महिला विकास निगम, बिहार सरकार के सहयोग से दलित महिलाओं का दस नाट्य दल तैयार किया । उन पंचायतों में लोक नाटक डोमकच की नई कलात्मक प्रस्तुति की । ताकि महिलाओं की अपनी आजीविका का संवर्धन हो । हमारी भी लोकसंस्कृति चमकती रहे । संस्था ने शुरू से अभी तक लगभग एक हज़ार से अधिक कलाकार दिये । युवावों , महिलाओं और बच्चों को कलाकारिता जीवन जीने की कला से रूबरू कराया ।
निष्कर्ष कि जय हो गिरगिट महाराज समाज और अधिकारियों को चिकोटी काटता दिखा । महेन्द्र प्रसाद सिंह के द्वारा लिखित एवं निर्देशित यह पहली प्रस्तुति थी । सहायक निर्देशक अखिलेश कुमार पान्डेय थे। मेरे विचार से शायद इसे और भी रोचक बनाया जा सकता है । गुंजाईश भी है । अपने विषय के उलझनों से सुलझने की कोशिश करता दिखा नाटक । कारण दर्शक भी थोड़ी उलझते रहें ।
और आख़िर में कहना चाहूँगा कि मंचन काफ़ी सराहनीय रहा । जय गिरगिट महाराज विषय हीं हमें अपनी ओर खींच लाता है । आशा है इसे और भी मज़ेदार और दमदार रूप में प्रस्तुत किया जाएगा । ताकि हम फिर आएँगे और एक रोमांचक पल बटोरकर ले जाएँगें । नाट्य कला के प्रति समर्पित रंगश्री को बहुत-बहुत धन्यवाद ।
ओमप्रकाश अमृतांशु
आपका प्यार हीं हमें लिखने के लिए उत्साहित करता है । कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें ।
हम cartoondhun व्यंग्य चित्रों की आँगन में आपका स्वागत करते हैं..
आपने शब्दों की माला से रंगश्री के नाटक जय गिरगिट महाराज का जो वर्णन किया है वो भी लाजवाब है।
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