ओमप्रकाश अमृतांशु-
जब देश अंगरेजन से गुलाम रहे, तब देश के हर नागरिक इहे चाहत रहे कइसे देश आजाद होई ? आज के सवाल बा कि आज़ाद भारत के चंगुल में ग़रीब आ ग़रीबी कबले रही ? देश के आजाद करावे खातिर चारो तरफ अंगरेजन के विरोध होखे लागल। झांसी के रानी, भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, मंगल पाण्डेय, वीर कुअँर सिंह आ हजारो क्रांतिकारी लोग आपन जान गंवइलस। इहां तक कि महात्मा गाँधी के भी आपन जान के किमत चुकावे के पड़ल। आज आजादी के ६७ साल हो गइल। भारत आजाद त हो गइल, लेकिन का एहिजा के हर नागरिक के आजादी मिलल ? गाँव के देश कहावेवाला भारत के आज स्वरूप बदल गइल बा। भारत के नाम से मशहूर देश आज इंड़िया के नाम से जानल जाता। आधुनिक शहर के देश हो गइल बा।लोग बढ़िया शिक्षा, जहर मुक्त पानी, ऑस्पताल, रोटी-रोजी, कपड़ा आ पक्का मकान खातिर दिन-रात मेहनत-मजदूरी करेला। भूख, गरीबी, बेरोजगारी आ बेमारी के चक्रव्यूह में पिसात रहेला। तबहूँ लोग ना चैन से जी पावेला, ना चैन से मर पावेला। आज भी लालटेन आ ढ़िबरी के रोशनी में आपन जीवन बीतावेला। गोइठा-लकड़ी पे खाना सवख से ना मजबूरी में बनावेला। दोसरा ओर इंड़िया के लोग तरक्की के ओर अग्रसर आगे बढ़ रहल बा। बढ़िया शिक्षा, उतम क्वालिटी के स्वास्थ्य सेवा, एक से बढ़ के एक विदेशी खाना, चमचमात गाड़ी, कोठी-बंगला, चालिस ताला इमारत के सुख के आनंद ले रहल बा। चकाचौंध बिजली के रोशनी में नहात, ए सी के ठंढ़ा हवा में मिठा सपाना के गोदी में सिर रख के लोग चैन से सूत रहल बा। दरअसल आजादी के बाद देश के नीती कुछ अइसन बनल कि अमीर आगे बढ़त रहल आ गरीब रोटी-रोजी के जुगाड़ करत-करत मरत रहल। गरीब के कंधा पे अमीर लोग फरे-फूलाए लागल। गरीब के थाली के रोटी छिनाए लागल। गरीब आ मध्यम वर्ग के बेटी-बहिन अमीरन खातिर भोग के वस्तु बनि के रह गइल। भीख मांगे वाला के बेटा-बेटी आज भी भीख मांगत देखल जा सकेला। किसान के बेटा किसानी करे पे मजबूर बा।
देश के लोगन के आजादी त मिल बाकिर आजादी एगो खास तबका के झोली में सिमट के रह गइल। सही में आजादी ओह लोगन के मिलल जे पाँच सितारा होटल में बइठ के २000से ५000 के थाली खाके डकार जाता। आजादी ओह दस प्रतिशत लोगन खातिर बा जे ९0 प्रतिशत आय पे कब्जा जमवले बा। देखल जाव त राजनेता, उद्यौेगपति, नौकरशाह आ दबंग लोगन के हीं आजादी बा।
भारत में गरीबी के लगातार स्तर बढ़ल जात बा, जवन देश खातिर बहुत बड़हन चुनौती बा। कहल जा रहल बा कि २0२0 में भारत विकसित देश में शामिल हो जाई। आंकड़ा में बतावल जा रहल बा कि भारत बहुत ज्लदिए दस पर्सेंट ग्रोथ हासिल कर लिही। आ हमार देश चीन के पीछा छोड़ दिही। जबकि सच्चाई ईहे बा कि भारत में सबसे अधिका गरीब लोग रहेला। देश में कुल गरीबन के संख्या लगभग ४२ करोड़ के पार बा। यूएनडीपी के ताजा रिर्पोट संस्करण में कहल गइल बा कि बिहार ,उत्तर प्रदेश , पश्चिम बंगाल , मध्य प्रदेश , छतीसगढ़ , झारखंड , उड़ीसा आ राजस्थान में गरीब के संख्या बहुत अधिका बा। गरीब लोगन के संख्या लगातार बढ़ रहल बा। एहीजा गरीब के मतलब जवन परिवार में आज के हिसाब से आमदनी ४७ रोपेया से कम होखे। एह लोगन के ना त स्वास्थ्य सुविधा मिल पावेला ना बेहतर शिक्षा। पियास मिटावे खातिर साफ पानी तक नसीब ना होखे। लगभग २२ फीसदी भारत के लोग गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करेला। जेतना गरीबी छतीसगढ़ मे बा लगभग ओतने गरीबी गुजरात में भी बा। केरल आ दिल्ली के गांव शहर से भी ज्यादा महंगा बा। आज गरीबी रेखा से भी ज्यादा ‘अमीरी रेखा’ निर्धारित कइल जरूरी बा। अमीर के बढ़त तादाद से गरीबी के तादाद लगातार बढ़ रहल बा। कोई आदमी अमीर तबले ना बन पावेला जबले उ कम से कम दस आदमी के गरीब ना बनावे। कागज में गरीब के कल्याण खातिर केतना कल्याण कारी योजना बनावल गइल बाकिर आज तक सही जरूरत मंद के कल्याण ना भइल। राजनैतिक – प्रशासनिक इच्छा शक्ति के अभाव में हमेशा गरीब आदमी वंचित रहल। गरीबी निवारण खातिर देश में ग्रामिण स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय समाजिक सहायता योजना, राष्ट्रीय वृद्वा पेंशन योजना, राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना, राष्ट्रीय प्रसव लाभ योजना, शिक्षा सहयोग योजना, सामूहिक जीवन बिमा योजना, जयप्रकाश नारायण रोजगार गारंटी योजना, प्रधानमंत्री रोजगार गारंटी योेजना, भारत निर्माण कार्यक्रम, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय विकलांगता पेंशन योजना, बीस सूत्रीय कार्यक्रम, जवाहर ग्राम्य योजना , महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम अनेकन एकरा अलाावे ना जाने केतना योजना। अनगिनत योजना के लाभ गरीब के त ना मिल पावे बाकिर, बिचौलिया लोगन के जरूर लाभ मिल जाला। अगर इ सब योजनन के लाभ गरीब लोगन के मिल जाई फिर काहे के गरीब आ गरीबी। भूमण्डलीकरण के बहाने आज किसान मजदूर लोग अपने जमीन से बेदखल हो रहल बा। ग्रामीण विकास मंत्रालय के रिर्पोट के अनुसार लगभग दू करोड़ लोग आपन जमीन गंवा चुकल बा। अमीरी- गरीबी के खाई आउर बड़हन हो रहल बा। गरीब लड़िकन के खर्चा के पन्द्रह गुना ज्यादा खर्च अमीर के लड़िका लोग करेला। दिन पे दिन मजदूर किसानन के आत्महत्या करे के आंकड़ा बढ़ल जात बा।
गरीब लड़िकन के खर्चा के पन्द्रह गुना ज्यादा खर्च अमीर के लड़िका लोग करेला। एक ओर महल में पलत-बढ़त अमीरलोगन के बच्चा दूसरा ओर टूटल झोपड़ी में सिसकत बचपन। आज गरीब लड़िकन के अभिभावक लोगन के गरिआवल जाला कि सरकार के ओर से छोट लड़िकन के तमाम सुविधा निःशुल्क होखे के बावजूद उ आपन लड़िकन के स्कूल नइखे भेज पावत। लोग लड़िकन के पढ़ावल नइखे चाहत। असल में बात ई नईखे। बात बा कि कमाये वाला दू गो हाथ कम पड़ जाई। अइसे में बालश्रम के संख्या लगातार दिन प्रतिदिन बढ़ल चल जाता। बालश्रम पे रोक लगावल बहुत जरूरी बा। शायदे कवनो अइसन जगह होई जहंवा मासूम लड़िकन लोग काम ना करत होई। कतहीं पीठ पे अपना से बड़हन बोरा लटकवले रोटी के तलाश करत बचपन मिल जाई , त कहीं होटल के बरतन चमकावत। कमीज खोलके ट्रेन के फर्श साफ करत बचपन, जूता में पॉलिस करत मासूम, दरी- कालीन, माचिस के डिब्बी बनावत , पतंग बनावत त कबो खिलौना के फैक्ट्री में देखल जा सकेला। शायदे कवनो अइसन जगह होई जहंवा लड़िकन के काम करत ना देखल जात होई। अइसन बच्चा जवन गरीबी में पलत-बढ़त हर बुनियादी हक से अनजान रहेलन , अइसन लड़िकन में कुपोषण , असुरक्षित वातावरण, बीमारी , अशिक्षा जइसन समस्यन के पनपे के आशंका रहेला। लड़िकन खातिर पोषित के संकट बढ़ रहल बा। सरकार हर साल केन्द्रीय बजट में बच्चन के बढ़त जनसंख्या के मुकाबले खर्च में बढ़ोतरी के बजाय कटौती करत जात बिया। लगभग ४॰ करोड़ लड़िकन के पढ़ाई पे राष्ट्रीय बजट के केवल 3 प्रतिशत शिक्षा पे अर १ प्रतिशत स्वाथ्य पे खरच कइल जाला। सरकार के प्राथमिक उपचार केन्द्र, आंगनबाड़ी, स्कूल, राशन के दोकान खातिर बजट बढ़ावे के चाहीं। अइसन देश जवन आर्थिक विकास के ओर आगे बढ़ रहल बा अगर शिक्षा आ स्वास्थ्य पे कम खर्च करी त पिछड़े लागी। भारत में लगभग २‐३ करोड़ बच्चा कुपोषण के शिकार बाड़न सं। रिर्पोट के अनुसार आंगन बाड़ी से जुड़ल आठ करोड़ में से लगभग २८ प्रतिशत मासूम बचपन के कुपोषित पावल गइल। आंकड़ बतावता कि भारत के ५0 प्रतिशत कुपाषित बचपन बिहार में बा। ३७ प्रतिशत आंध्रप्रदेश में। ३६ प्रतिशत उत्तर प्रदेश में , ३५ प्रतिशत दिल्ली में ,३२ प्रतिशत राजस्थान में आ ३२ प्रतिशत छतीसगढ़ में। एह आंकड़ा के अनुसार शहरी गरीबी आ गंवई गरीबी में कवनो ज्यादा फर्क नइखे।
सरकारी स्कूल में पढ़ाई करेवाला छात्रा-छात्रन के दूपहरिया के भोजन योजना के नाम हउए मिड डे मील। मिड डे मील केन्द्र सरकार के ई योजना केन्द सरकार आ राज्य सरकार दूनो के सहयोग से चलावल जाला। मिड डे मील में निःशुल्क पौष्टिक आ साफ-सुथरा भोजन देवे के प्रवधान बा। एह योजना के मुख्य लक्ष्य पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराके विद्यार्थीयन में शिक्षा ग्रहण करे के क्षमता के विकसित कइल आ स्कूलन में छात्रन के संख्या बढ़ावल। सरकारी योजना मिड डे मील में अक्सर लापरवाही के मामला सामने आवत रहेला। आज एह योजना के संरक्षक लोग भक्षक बन गइल बा। हमेशा दू-चार महीना बाद मिड डे मील अखबार आ टेलिविजन न्यूज के मुख्य समाचार बन जाला। आज मिड डे मील के भोजन खाके चालीस छात्रन के तबियत खराब हो गइल। मिल डे मील के खाना में छिपकली आ केमिकल पावल गइल। सरकारी स्कूल के दूपहरिया के भोजन में सांप निकलल। जहरिला मिड डे मील के खाना खाके सौ गो विद्यार्थीयन के जान गइल। मिड डे मील के संरक्षक आ मास्टर लोग के घर में बोरा के बोरा चाउर भरल रहेला। बाजार से सस्ता आ खराब समान मिड डे मील खातिर प्रयोग कइल जाला। बस आपन घर भरल रहे से मतलब बा। शहर होखो भा गाँव एह सब सरकारी स्कूलन में अमीर लोगन के लड़िका लोग ना पढ़े। एह स्कूलन में पढ़े वाला गरीब आदमिन के बच्चा होखेला। लोग आपन करेजा के टूकड़ा के पढ़ावे- लिखावे खातिर भेजेला, जवन हर माई-बाप के सपना होखेला। बाकिर उनकर करेजा के टूकड़ा कब मूरूझा जाई कवनो गारंटी नइखे। सरकार जंाच के अस्वाशन देके चुप लगा जाले। कबो-कबो दिमाग में इहे बात आवेला कि सरकार गरीबी दूर कइल चाहतिया कि गरीब के?
जब १४ साल के कम उमर के बच्चा जब आपन आ आपन परिवार के पेट भरे खातिर काम करेलल सं ओकरे के बाल मजदूर कहल जाला। आपन देश में हर १0 में से ९ गो बच्चा बाल मजदूरी करत बाड़न सं। देखल जाव त बाल मजदूरी अविकसित देशन में व्याप्त हजारों समस्यन के नतीजा हउए। बाल मजदूरी खत्म करे खातिर केन्द्र सरकार के योजना बा राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना। एह परियोजना के तहत विशेष स्कूल भी चलावल जाला। स्कूल में विशेष पाठ्यक्रम भी बा, ताकि आगे चलके एह लड़िकन के मुख्यधारा के स्कूलन में पढ़ाई करे में कवनो परेशानी ना होखे। लेकिन सवाल बा कि केतना बच्चन के एह परियोजना के लाभ मिल पावेला ? केतना बच्चा एह परियोजना के स्कूल में पढ़ाई करेलन सं ? केतना लड़िकन के जीवन सुधार भइल। अगर गहराई से खोज-बिन करीं त मालूम चली कि हकिकत का बा। काहे आज भी कूड़े दान में बाल मजदूर आपन पीठ पे अपना से बड़हन कूड़ा के बोरा ढोये खातिर मजबूर बाड़न सं। बालश्रम पे रोक लगावल बहुत जरूरी बा। शायदे कवनो अइसन जगह होई जहंवा मासूम लड़िकन लोग काम ना करत होई। कतहीं पीठ पे अपना से बड़हन बोरा लटकवले रोटी के तलाश करत बचपन मिल जाई , त कहीं होटल के बरतन चमकावत। कमीज खोलके ट्रेन के फर्श साफ करत बचपन, जूता में पॉलिस करत मासूम, दरी- कालीन, माचिस के डिब्बी बनावत , पतंग बनावत त कबो खिलौना के फैक्ट्री में देखल जा सकेला। शायदे कवनो अइसन जगह होई जहंवा लड़िकन के काम करत ना देखल जात होई। जेतना ज्लदी होखे बाल मजदूरी के श्राप से देश के मुक्ति दिलावल बहुत जरूरी बा। जब तक बाल के मन बाल मजदूरी से श्रापित रही तब तक देश के भविष्य दल-दल में फंसल रही। कहल जाला बच्चा देश के भविष्य होखेलन सं। सरकार आ समाज के सहयोग से हीं सबकुछ संभव बा। भले हम केतनो नया-नया रहन-सहन के तरिका सिख लिहीं, नया-नया भाषा आ नया आचार-व्यवहार के ज्ञानी हो जाईं, आसमान में उड़ जाईं, समुंद्र लांध जाईं, बाहुबली देश बन जाईं, मोटा-मोटा पोथी लिख दिहीं, हजारों स्कूल, मदरसा, विश्वविद्यालय के निमार्ण कर के वाह-वाही लूट लिहीं आ मासूम गरीब बचपन के काम करेे खातिर विवश कर दिहीं। त इ गरीब मासूम आ देश खातिर मजाक नइखे ना ह त का ह।
गाँव होखे भा शहर चारो ओर अपरहण आ बालात्कार के डर से लोगन के करेजा कांप रहल बा। कतहीं केहू सुरक्षित नइखे लागत। कहल जाला बच्चा मन के साँचा होखे लनसं। बच्चा के आत्मा में भगवान के वाश होखेला।आज हर दिन हर समय बच्चन के अपहरण के मामला सामनेे आ रहल बा। स्कूल से आज बच्चा के अपहरण हो गइल। बाल आश्रम से कुछ लड़िकन- लड़िकिन के काल्ह अपहरण हो गइल। हमेशा अइसन अपराध अक्सर सुने में आवेला। नबालिक लइकिन के अपरहण करके बलात्कार , बाल मजदूरी आ सड़क पे भीख मंगवावे जइसन जधन्य अपराध आज देश में चिंता के विषय हो गइल बा। एगो लापता बच्चा के माता-पिता के सबसे बूरा सपना होखेला। एगो रिर्पो के मोताबिक २00१ से २0११ के बीच में पांच साल के कम उम्र के लइकिन से बलात्कार के लगभग ४८ हजार ३३८ मामला दर्ज भइल। यानी एह दस साल में चाइल्ड रेप ३३६ फीसदी बढ़ गइल।
दिन पे दिन बढ़ रहल बलात्कार जइसन अपराध देश भर के झिझोंड़ के रख देले बा। रोज के बात छोड़ दिहीं करीब सवा करोड़ से अधिका अबादी वाला आपन देश में हर २८ मिनट में कवनो ना कवनो महिला के साथे बलत्कार हो रहल बा।१९७१ के बाद देश में बलात्कार के घटना ८७३‐३ फीसदी तक बढ़ल बा। आजकाल्ह सामूहिक बलात्कार के घटना जवन तेजी से फल-फूल रहल बा, चिंता के बात बा। २0१३ दिल्ली में निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड़ के बाद भारत के कवनो हिस्सा में रहे वाली महिला लोगन के देह में हमेशा यौन हमला के डर समाईल रहेला। ९२ फीसदी कामकाजी महिला लोग खूद के असुरक्षित महसूस करेली। पहिले लइकिन आ औरतन के बाहरी दरिंदन से बचके रहेके पड़त रहे, अब उहे दरिंदा पहचान के, गली-मोहल्ला आ आपन परिवार के हो गइल बाड़न। इंसान के रूप में हैवान के संख्या लगातार बढ़ल जा रहल बा। औरतन आ लइकिन के अस्मत लूटल जा रहल बा। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश आ असम में बलात्कार के घटना सबसे ज्यादा हो रहल बा। एक ओर बंगाल में २0१२ के मुकाबले २0१३ में बलात्कार के अपराध में कमी आइल बा। दोसरा ओर उत्तर प्रदेश में जेतना बलात्कार २0१२ में भइल , उहे अपराध २0१३ मे दोगुना हो गइल। मध्यप्रदेश में २0१३ में सबसे अधिका धटना बलात्कार के भइल। महाराष्ट्र आ आंध्रप्रदेश बलत्कार में उत्तर प्रदेश से भी आगे बा। बड़ी अफसोस के बात बा राम-कृष्ण के देश कहावे वाला भारत में आज के हर सिता-राधा हर घड़ी डर-डर के आ घूट-घूट के जिये पे मजबूर बाड़ी। ऋषि-मुनि, पीर-फकीरन के घरती भारत में आज बलात्कार, दंगा-फसाद, अपरहण, बाल मजदूरी, भ्रष्टाचार आ राजनीति के स्तर दिन-प्रतिदिन गिरल जा रहल बा। एह मामला में आज जरूरी बा धर्म, समाज, राजनीति सबसे ऊपर उठके नाबालिक ,माई-बहिनन, के रक्षा करेके वचन लेहल। जवन भाव से हमनी के माई दुर्गा, माई सरस्वती, माई लक्ष्मी के पुजा करेनीजा, ओहि भाव से अनकर के माई-बहिनन के देखे के होइ। तब जाके हमार समाज सुन्दर आ स्नेह से भरल होइ। कहे के मतलब कि समाजिक जागरूकता बहुत जरूरी बा।
घोटाला के घूँट , काला धन पे छूट...
आजादी से लेके अब तक जे भी जवना पद पे रहल, देश के पइसा लूटे के कोशिश कइलस। आज हर विभाग, हर मंत्रालय, हर योजना घोटाला से भरल बा। पिछला दस साल में जल, जंगल, जमीन, हवा, पानी, तरंग, आकाश, पाताल यानी सबकुछ लूटल बेचल गइल। अचरज के बात बा कि किसानन के हिस्सा के पइसा, जमीन आ जानवरन के चारा तक ना बाचल। सांसद, मंत्री, नौकरशाह, मुख्यमंत्री, मंत्री लोगन के बेटा-बेटी, भांजा, रिश्तेदार, दामाद, करपोरेट घराना, बिचौलिया आ दालाल सब केहू घेटाला के घूंट पियल। इहां तक कि इमानदार माने जाये वाला प्रधानमंत्री पे भी कोयला घोटाला के आरोप लागल। देश में जवन तजी से आर्थिक विकास हो रहल बा ओहि गति से घोटाला भी। केन्द सरकार के महत्वकांक्षी योजना मनरेगा जकरा बारे में कहल जाला गरीब बेरोजगार के भूख मिटावे वाला योजना हउए। एह योजना के मलाई दलाला लोग खा रहल बा। मनरेगा के १३ हजार करोड़ रूपेया लोग खा-पी गइल। अइसहीं बहुत सारा योजना बाड़ी सं जवनन में करोड़ो रूपेयन के गबन भइल बा। चारा घोटाला १५0 करोड़ रूपेया के , दूरसंचार घोटाला १२00 करोड़ रूपेया के, यूरिया घोटाला १३३ करोड़ रूपेया के, एयरबस घोटाला १२0 करोड़ रूपेया के, स्टॉक मार्केट घोटाला ४१00 करोड़ रूपेया के, बेफोर्स घोटाला ६४ करोड़ रूपेया के ना जाने केतना-केतना घोटाला, जेकरा के गीनत-गीनत आदमी थक जाई। गाँव में मुखिया, सरपंच, गा्रम प्रधान से लेके छोट-बड़ सभे एह घोटाला के घूंट पी के आपन जेब गरम करता। भारत अवरू कुछुओ में नम्बर एक होखो भा ना होखो, घोटाला में सबसे आगे बा। पिछला के दस-पन्द्रह साल के घोटाला के आंकड़ा बतावता कि लोक कल्याणकरी सरकार के जगहा पे दलाल, घूसखोर, बिचौलिया आ गइल बाड़न सं। देश के कानून आम जनता के हित खातिर ना अमीर लोगन के जेब भरे खातिर बा। एह देश में गरीबी के बात करेवाला भारत के नेता, मंत्री , नौकरशाह लोग गरीब के खून बडी़ चाव से पियेलन। गरीब ओहि टूटल-फूटल घर में गुजर-बसर करता, अमीर के नया-नया ¬¬कोठी -बंगला हर साल करोड़ो रूपेया के खरिदा रहल बा। गरीब छुंछे रोटी खाके मेहनत करता, नेता-मंत्री लोग घोटाला के घूंट पी के मस्त रहता।
गरीबन के मुँह पे खइला बिना फेफड़ी पड़ल बा, अमीर आ नेता लोगन के पइसा कालाधन विदेश में जामा होखता। स्विटजरलैंड के स्विस बैंक में खाता खोले खातिर ५0 करोड़ रूपेया लागेला। एतना मोट रकम कवनो आम आदमी त सपनो में ना सोचले होेई। दरअसल इ सब रोपेया धूस आ घोटाला के होखेला। नेता लोग करोड़-करोड़ रोपेया घूस लेवेला आ उहे रोपेया विदेश में जामा करेला। काला धन वापस लिआवे खातिर केतना साल से बात हो रहल बा, बाकिर केहू नइखे चाहत कि काला धन वापस आओ। कानून बनावे वाला, कनून पास करे वाला अपना खिलाफ कइसे कानून बना सकेला। देश के आम आदमी से साथे छल-प्रपंच चल रहल बा कि काला धन के जांच चल रहल बा। बहुत ज्लदिये काला धन वापस आ जाई। काला धन जब वापस आ जाइ, संउसे नेता, उद्योगपति लोगन के चेहरा से ईमनदारी के नकाब उतर जाई। भारत के विदेशन में २,000 अरब डॉलर (करिब १,२0,000 करोड़ रोपेया) के काला होखे के अनुमान बा। आज भारत के खजाना खाली बा । मंहगाई के मार भारी बा। वैश्विक मंदी से दुनिया के बचावे खातिर पूरे विश्व के देशन के लागता उनकर देश के काला धन यदि वापस आ जाय त मंदी के मार से बचल जा सकेला। देश के आज पईसा के जरूरत बा। अइसे में देश के सरकार अगर जाति धर्म, दोस्ती, पार्टी से उपर उठ के काम करी त विदेश में जामा लाखों- करोड़ो रोपेया भारत में आवे के संभावना बनी। जय हिन्द। जय भोजपुरी। जय भारत
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