Artist-Omprakash Amritanshu
चइत महीना के उतपाती कहल जाला। महाकवि कालिदास ‘ऋतुसंहार’ में कहले बानी- चइत मास वासंतिक सुषमा से परिपूर्ण, लुभावना सांझ, छिटकत चाँदनी, कोइली के कुहूक, गमकत बेयार, मतवाला भँवरा के गुंजन आ रात में आसनपान ई सिंगार भाव के जगाके रखेवाला महीना हउए। चइत के लहार विरहिनी के रांेवां-रोंवां डहका देवेला। चइत महीना में अनुराग होखेला, मिलन होखेला। प्राकृति के कण-कण मस्ती में डूबल होखेला। कोइली के कुहूक एक ओर मन के बिहंसा देवेला, त दोसर ओर विरहिनी के करेजा में ताना के तीर से घवाहिल कर देवेला। परदेशी पिया के राह निहारत जवानी के चौकठ पे ठाढ़ वधू, पिया जब चइतो में नइखन आवत तब ओकर डहकत दिल से इहे भाव निकलेला –
चइत मास जोबना फूाइल हो रामा, पिया नाहि अइलें। आम मोजरी गइलें, लगलें टिकोढ़वा कोयली कुहूक मारे तानावा हो रामा, पिया नाहि अइलें।
चइत महीना के बेयार मीठा-मीठा आलस से भरल रहेला। बदन में मीठा-मीठा दरद आ मन मताइल रहेला। नीन आ सपना में डूबल एगो नायिका के जगइला पे नायिका के खीझ देखीं-
सुतला में काहे जगइल हो रामा, भोरे हीं भोरे। रस के सपनवा में रहे आँख डूबल, अंग हीं अंग अलसाए हो रामा, भोरे हीं भोरे।
अइसन हउए चइत के महीना, जेकरा के मधुमास भी कहल जाला। प्राकृति के आंगन में रंग-बिरंग के गमकउआ फूल के महक अंग-अंग में समा के लहर जगा देवेला। ई बात स्पष्ट बा कि जवान भइल बसंत में सिंगार के भाव प्राबल्य होखे के कारण प्रियतम वियोग के पीड़ा बढ़ि आ जाला। जइसे कि-
रामा सगरे चइत बीति गइले हो रामा, सईयां नाहि अइलें। बेलिया फूलाइल, कोढ़ीआइल चमेलिया हो, रामा साड़ी बनि कुसुमी फुलइले हो रामा, सईयां नाहि अइलें। दस त तरूनिया चइत घाटो गावे, रामा गाई-गाई सखि समुझावे हो रामा, सईयां नाहि अइलें।
चइत में महुआ के महक यौवन मन के मदमस्त कर देवेला। महुआ के बूंद-बूंद नशा के उपयोग में आवेला। एगो युवती के महुआ बीने जाए के चित्र देखल जाव-
महुआ बीनन हम गइलीं ये रामा, महुआ के बगिया। कोइली कुहूक मारे , पिहुके पपिहावा झिरी-झिरी झिहरे बेयरिया हो रामा, महुआ के बगिया।
चइता के गीतन से मुख्यतः भक्ति -सिंगार आ विरह रस के भाव छलकेला। चइता में प्रेम-सिंगार आ विरह के कहानी अलग-अलग राग में लिखल बा। कतहीं पति-पत्नि के प्रणय कलह के झांकी त कतहीं ननद भउजाई के पनघट पे पानी भरत खानी दुष्ट कामुक आदमी के छेड़खी के उल्लेख। राध कृष्ण के प्रेम-प्रसंग बा त कहीं विरहिनि के वियोग के भाव। चइत के गीत में कतहीं-कतहीं भाव के बहुते प्रभावशाली चित्राण देखेके मिलेला। साथ में चित्र-विचित्र कथा-प्रसंग आ भाव के अलावे, समाजिक जीवन के दोष भी देखेके मिलेला। बाल-विआह के विड़ंबना के भाव रउरा सामने बा-
रामा छोटका बलमुआ, बड़ा निक लागे हो रामा। आँचरा ओढ़ाई, सुताइबि भरि कोरवा हो रामा आँचरा ओढ़ाई …. रामा करवा फेरत पछुअवा, गड़ि गइले हो रामा। सुसुकी-सुसुकी रोवे सिरहनवा हो रामा। सुसुकी-सुसुकी …..
मान्यता हउए कि जगत के रचइता ब्रह्मा माह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के सूर्योदय के समय संपूर्ण सृष्टि के रचना कइले रहलें। एहीसे चइत के महीना धर्मिक भावना से भी जुड़ल बा। कहल जाला चइत माह के शुक्ल अष्टमी के माई पार्वती आ श्री राम के जन्म चइत शुक्ल नवमी के भइल रहे। एहीसे राम के जन्मोत्सव भी मनावल जाला। चइत शुक्ल तृतीया के भगवान विष्णु के तीसरा जन्म भइल आ पंचमी के पूर्ण रूप से मछरी के रूप यानी मतस्यावतार के रूप धरण कइले रहलन। भगवान विष्णु चइत शुक्ल नवमी के वराह के रूप में भी जन्म लिहले रहन।
चइत नवमी में राम के जन्म खूब जोर-शोर से मनावल जाला। घरे-घरे बाजेला बधईया हो रामा, अवध नगरिया । राम नवमी के दिन चइता गावे के एगो विशेष उत्साह होखेला। राम जन्म आ उनकर जीवन के घटना से संबंध्ति भाव भी गीतन में देखे के मिलेला-
रामा चढ़ले चइतवा राम जनमले हो रामा घरे-घरे बाजेला अनद बधईया हो रामा, घरे-घरे । रामा दशरथ लुटावे अनधन सोनवा हो रामा, केकयी लुटावे सोने के मुनरिया हो रामा, घरे-घरे ।
राजा जनक प्रण कइलन कि शिव धनुष के जे तुड़ दिही ओकरे से सिता के विआह होई-
रामा राजा जनक जी कठिन प्रण कइलें हो रामा, देसे-देसे पतिया पठावे हो रामा, देसे-देसे ।
भक्तिमय चइत में शिव-पार्वती के सुनर संवाद के भी भाव देखेके मिलेला-
भोर भिनुसारवा शिवजी जगावे हो रामा, उठ गउरा भंगिया पिसि पिआव हो रामा, उठ गउरा।
शिवजी पे जल चढ़ावे के वर्णन देखीं-
रामा जइबो दोअरिका जल भरि लइबो हो रामा, घुमी-घुमी शिव पे चढ़इबो हो रामा, घुमी-घुमी।
एही तरह से राधा-कृष्ण के अनेकन भाव उकेरल गइल बा।
हरि मोरा गइलें मधुवनवा हो रामा, चइत महिनवा लागेला सुन भवनवा हो रामा, चइत महिनवा।
कार्तिक नवरात्रा के तरह हीं चइत नवरात्रा में शक्तिपीठ पे देवी के विशेष अराधना कइल जाला। चइत में भी छठ पुजा करे के प्रचलन बा। काहे से कि सूर्य देव एह महीना में मेष राशी में प्रवेश कर जालन। मेष राशी में गइला से सूर्य के उपासना श्रेष्ठ मानल जाला। चइत में शक्ति आ सच्चाई के उपासना के बड़ी महत्व बा।
एह गीत के जब अकेले गावल जाला तब चइती, दल-बल के साथे गवला पे चइता कहल जाला। घाटो के धुन तनी सा बदल जाला। एह लोक प्रिय गीत-संगीत के मगही में चइतार आ मैथिली में चइतावर भी कहल जाला। दू दल में बँटा के सवाल-जवाब के प्रतियोगिता के रूप में जवन चइत के प्रोग्राम होखेला ओकरा के चइता दंगल आ दू गोला कहल जाला। चइता में छंद के ना लय के कमाल होखेला। ई पढ़े के ना होके सुने के चीज हउए। चइत गुनगुनावे के ना करेजा पफाड़ के गावल जाला। ढ़ोलक के ताल आ झाल के झंझकार कोसन दूर तक गूँजेला। चइत गावे आ सुने से मन-दिल के अन्दर के घूटन दूर हो जाला। नस-नस के गांठ खुल के रोमांचित हो उठेला। चइता के गावे वाला लोगन के कंठ में टांसी होखे के चाहीं, करेजा मजबूत होखे के चाहीं, नाभी में दम होखे के चाहीं।
चइता गावे से पहिल गवईया लोग देवी सरस्वती के सुमिरन करेला। हे देवी सरस्वती आज हमार लाज बचाईं आ हमरा कंठ में वास करीं—
सरसती मइया पड़िलें तोरी पइयां हो रामा, कंठे सुरवा होख ना सहईया हो रामा, कंठे सुरवा।
चइता गावे के ढंग बिलकुल निराला होखेला। गीत के पहिले ‘रामा’ आ अंत में ‘हो रामा’ शब्दन के प्रयोग होखेला। शुरू उँचा स्वर के कइल जाला, बीच में अवरोह (उतराव) आवेला आ फिर अंत में आरोह (चढ़ाव) आवेला। स्वर के एह आरोह- अवरोह के क्रम से गवनई के मधुर संगीत सुनेवाला लोगन के कान में आनंद घोरेला। विरहिनी लोगन के दुःखित हद्वय के प्रफुल्लित बनावे में विशेष रूप से सपफल होखेला। भोजपुरी गीतन में चइता आपन मधुरिमा आ कोमलता में सानी ना रखे। एकर स्वर में एगो विशेष प्रकार के हद्वय द्रवित करे के भाव श्रोतागण के मंत्रमुग्ध कर देवेला।
नया अनाज के घर में आवे के समय होखेला, जेकर खुशी में चइत गा-गा के मनावल जाला। किसान आ खेतिहर मजदूर के सबसे अधिका खटनी चइत महीना में होखेला। दिन भर खेतिहर मजदूर किसान के खेत के फसल काट के बोझा बान्ह के खरिहानी तक पहुँचावेला। खरिहानी में रात-दिन एक कर के दवनी- मिसनी करत बदन थाक जाला। एही सब थकनी-खटनी मिटावे खातिर चइता के गवनई पूरे एक महीना होखेला। चइत के गीत में अनपढ़ देहाती चाहे पढ़ल-लिखल जनता के दिल छु लेवे में जेतना समर्थ होखेला ओतना शायद दोसर गीत ना।
ओमप्रकाश अमृतांशु
(हमार ब्लॉग भोजपुरी लोकपत्र के पुरान समाग्री। )
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