माई के वियोग । चमकी बोखार के प्रकोप
टुकर – टुकर देखत बाड़ऽ
लाशावा गिनत बाड़ऽ
टभकेला माई के ममतावा नीतिश बाबू ।
बुझेलऽ ना दु:खवा – वियोगवा नीतिश बाबू ।।
कवने कसूरवा करेजावा के ख़ून भइल
माई के आँचरावा – गोदवा बिहुन भइल
कालवा के नागवा
ई चमकी बोखारवा
निगऽलता रोज़े – रोज़े कोखवा नीतिश बाबू ।
कइसन आफदरा में परल बा पारानवा हो
छट – पट करे दुध मुँहवा ललनावा हो
अँखिओ ना खोलत बा
नाहि तनिको डोलत बा
अईंठेला यमवा जियरावा नीतिश बाबू ।
बुझेलऽ ना दु:खवा वियोगवा नीतिश बाबू ।।
बिलखे शहरिया आ गऊँआ – नगरिया हो
चीखवा – पुकार सुनीं जाईं जवने रहिया हो
ढ़रकऽत लोरवा बा
नाहि जेकर छोरवा बा
हॉय ! हहरे अभागीन के हियावा नीतिश बाबू ।
बिहार में बहार बा सवाल ढ़ेरो खाड़ बा
अजधल में पड़ल जिनिगिया लाचार बा
हॉय ! कइसे चूमी मुँहवा
उड़ गइलें मोर सुगनावा
कलपेला पल – पल हो रोआँवा नीतिश बाबू ।
कर जोऽड़ी विनती अरजिया करत बानी
धंसल विपतिया के दलदल में हम बनी
कवनोऽ जतन करऽ
अबहूँऽ से पीर हरऽ
डहके धरतिया आकाशवा नीतिश बाबू ।
मुज़फ़्फ़रपुर में चमकी बोखार के प्रकोप जारी बा । डाक्टर लोगन के शोध जारी बा । करीब 150 लड़िकन के निगल चुकल बा । ई काल के नाग आपन फ़न खोल चुकल बा । पसरत बा धीरे – धीरे अब पूरे बिहार में । छोट लड़िकन के चपेटत बा दिमागी बोखार में । मचल हहाकार बा गऊँआ – शहरिया में । चीखवा – पुकार सुनाता नगर के गलिया में । देश के भविष्य मौत के नींद सुत रहल बा । सिस्टम बुत बनल ना नींद से ना उठ रहल बा ।
पुत्र के वियोग में डूबल पूरा बिहार । एह दु:ख के बदरा से सरकारो गइल हार । एह दलदल से निकले के उपाय नईखे सूझत । इंसानियत के पीर काहे भगवान भी नइखन बूझत ? निष्कर्ष एकर का होई कइसे बताईं ? कइसे में लोकवा के पीड़ा पर मरहम छपाई ? संकट बा भारी कइसन महामारी बा पसरल । पुत के वियोग में करेजावा बा सिकुड़ल ।
अब त केतना घर के आँगन सुन हो गइल । लेकिन, लागता जइसे नेताजी लोगन के खूनवा त नून हो गइल । नीतिश सरकार के धेयान केने बा ? उनकर संवेदना के खिलल चान केने बा ?
राउर प्यार लिखे खातिर उत्साहित करेला । कृपया करके आपन प्रतिक्रिया जरूर दिहीं ।
ओमप्रकाश अमृतांशु
हम cartoondhun व्यंग्य चित्रों की आँगन में आपका स्वागत करते हैं..
Kisi ka kokh ujad jaye isse bura aur kya ho Sakta. Very sad
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