Artist-Omprakash Amritanshu
केहू कहत राय बहादूर, केहू कहत शेक्सपियर । केहू कहत कवि भिखारी, घर कुतुबपुर दियर ।। दोहा बारह सौ पंचानबे जहिया, सुदी पूस पंचमी रहे तहिया।
रोज सोमार ठीक दुपहरिया, जन्म भइल ओही घरिया।।
( शुभ सम्वत् १९४४ शाके १८0९ तदनुसार १२९५ फसली आ सन् १८८७ ई॰ पूस मास शुक्ल पक्ष पंचमी सेमार के बारह बजे दिन में महान कलाकार भिखारी जी के जन्म भइल।)
चौपाई नौ बरस के जब हम भइनी। विद्या पढ़न पाट पर गइनी।। वर्ष एक तक जबदल मति। लिखे ना आइल रामगति।। मन में विद्या तनिक ना भवत। कुछ दिन फिरलीं गाइ चरावत।। गइया चार रहीं घर माहीं। तेहि के नित चरावन जाहीं।। तब कुछ लगलीं माथ कमावे। तब लागल विद्या मन भावे।। बनिया गुरू नाम भगवाना। उफहे ककहरा साथ पढ़ाना।। अल्पकाल में लिखे लगलीं। तेकरा बाद खड़गपुर भगलीं।। ललसा रहे जे बहरा जाईं। छुरा चलाकर दाम कमाईं।। गइलीं मेदनीपुर के जिला। ओहीजे देखलीं रामलीला।। ठाकुर दुअरा उफहाँ से गइलीं। चनन तलाब समुद्र नहइलीं।। दर्शन करि डेरा पर आई। खोलि पोथि देखलीं चौपाई।। फुलवारी के जगह बुझाइल। तुलसी कृत में मन लपटाइल।।
भिखारी ठाकुर / Artist- Omprakash Amritanshu
कलाकार, रचनाकार के आत्मा, परमात्मा के करिब होखेला। कलाकार के कला आत्मा हजारों रंग के भाव से गुलजार रहेला। लोक कलाकार के लोक जीवन शैली में रचल-बसल होखेला। लोक संस्कृति के आँचर में पलत-बढ़त, खेलत-कूदत-पफानत जब केहू ओही माटी संस्कृति के स्नेह में डूब जाला। उहे एक दिन माटी के सपूत बनके संस्कृति के महक बिखेरेला। आपन संस्कृति-आपन भाषा के डंका बजवलन।ऊहे डंका आज पूरे विश्व में चारू ओरे बाजत बा।
उनकर आत्मा में, कंठ में कहल जाव त रोेम-रोेम में साक्षत देवी सरस्वती समाइल रही। समाज के सही दिशा, सही राह देखावे वाला ई महान कलाकार। उनका मालूम रहे कि अबहीं हमार नाम थोड़ भइल बा, ना रहला के बाद अवरू नाम होइ। हर वर्ग के लोग हमके अपनाई आ आपन आदर्श मानी। उनके लिखल चौपाई बा कि- अबहीं नाम भइल बा थोरा। जब यह छूट जाई तन मोरा।। तेकरा बाद पच्चास बरीसा। तेकरा बाद बीस दस तीसा।। तेकरा बाद नाम होई जइहन। पंड़ित-कवि-सज्जन जस गइहन।। आज के साठ बरिस के भउईं। ना इसकुल में लिखनी कउईं।।
जबसे भिखारी ठाकुर बंगाल के पुनर्जागरण आंदोलन से प्रभावित होके आपन गाँव कुतुबपुर लवटलन। तबसे उ आपन अंतरात्मा में अलग किसिम के छटपटाहट महसूस करे लगलन। ओह दौर में भारत के राष्ट्रीय अस्मिता के जगावल जात रहे। साथे-साथे समाजिक मुद्वा पे भी गंभीर रूप से सकरात्मक साेंच पैदा कइल जात रहे। बाल-विआह के विरोध । विधवा-विआह के बढ़ावा। करम-कांड के समीक्षा। नारी अत्याचार के विरोध। बूढ़-पूरनिया लोगन के सुरक्षा के व्यवस्था। भारतीय संस्कृति के ढ़ेरन परम्परा के निर्माण आदि खातिर आंदोलन चलत रहे। सन् १९१९ ई0 में भिखारी ठाकुर आपन मण्डली के गठन कइलन। लोक नाटक, भजन, कीर्तन, गीत, कवित, चौपाईअन के रचना कइलन। अब गाँवे- गाँवे घूमके आपन लोक नाटक के ज़रिए समाज के बिगड़ल रूप के भंडा फोड़लन ।नया समाज के रूप देखा के भोजपुरी क्षेत्र में समाजिक, आर्थिक, धर्मिक आ सांस्कृतिक जागरण के संदेश दिहलन।
गरिब , उपेक्षित, अशिक्षित आ शोषित वर्ग के मन में उल्लास जागल। साथ में बड़-छोट जमींदार लोगन से भी भिखारी ठाकुर के अपार स्नेह मिलल। बिदेसिया में पति वियोगिनी नारी। भाई-विरोध् में परिवार के विघटन। विधवा विलाप में विध्वा पे अत्याचार। गंगा स्नान में धर्मिक आडम्बर। पुत्रा-बध में नारी के चरित्रा। गबर घिचोर में माई के ममता। ननद-भउजाई में बाल-विआह। बेटी-वियोग में बेटी बेचे आ बेमेल विआह जइसन समाजिक कुरूपता के रचना गढ़लन। समाज के नया दिशा देखवलन ।
खाली समस्या के सामने रखल उनकर काम ना रहे। बलुक ओेह समस्या से उबरे के उपाय भी बतावत रहलन। ढ़ोंगी, र्धूत, ठग साधुअन आ पुरोहित लोगन से भी सावधन कइलन। बुजुर्ग लोगन खतिर बूढशाला के सोंच रखेवाला महान अग्रसोची पुरूष रहलन भिखारी ठाकुर। भलहीं उनकरा लगे शिक्षा के कमी रहे । दिमाग अइसन कि एक से एक पढ़वईया आ ज्ञानी लोग आजुओ उनकरा बारे में विचार करत चकरा जाला।
गीतकार, कवि, नाटकार, नाट्य निर्देशक के साथे लोक संगीतकार आ मंजल अभिनेता भी रहलें जवन आदमी के भीतर एतना बड़ खुबी होखे उ आदमी के सधारण कहल अनूचित होई। उनकरा भीतर लोक संस्कृति के फुलवारी सजल रहे। उनकर हिरदय बहुआयामी प्रतिभा से लबा लब रहे।
भिखारी जी के रचना संसार में काव्य के भरपूर रस समाईल रहे। गीत, भजन-कीर्तन, चौपाई के बोल, सउँसे शब्दन से लोक संस्कृति के रस चूअत लउकेला। लोक संगीत के लय-ताल के कसौटी पे कसल विआह के गीत बा। चैता, चौबोला, बारहमासा, सोहर, पचरा आदि सुने खातिर ललायित सत रहे। तमाशा देखे खातिर लोग पाँच-पाँच कोस पैदल त दउड़ के लोग चल जात रहे।
भिखारी ठाकुर आपन नाटकन में हमेशा नया-नया करत रहत रहलें। बावन चोप के समियाना में पाँच-छव गो चउकी सटा-सटा के मंच बनावल जात रहे। मंच के पिछे सफेद कपड़ा टांगल जात रहे। मंच के दहिने समाजी लोग आपन-आपन ढोलक-झाल, हरमोनियम लेके बइठत रहे। रात के समय प्रोग्राम होखे के कारण अंजोर खातिर गैस यानी पेट्रोमेक्स टांगल जात रहे।
विश्व में पहिला बेर खुला मंच के प्रयोग भिखारी ठाकुर के देन हउए। आस-पड़ोस गाँव-जवार के लोग भिखारी के नाम सुनते दउड़ल-धूपल समियाना में जूटे लागत रहे। जहवां प्रोग्राम होखत रहे उहवां हजारो-हजारो के भीड़ जूटे लागत रहे। करिब सौ साल के हमार दादा रामदास पंडित भिखारी ठाकुर के दिवान रहलें। केतना बेर रेलवे के नौकरी से बिना छूट्टी लेले भिखारी के तमासा देखे खातिर चहूंपल रहत रहलें। भिखारी के प्रति दिवाना पन ऐतना कि हमार बाबूजी के वियाह यानी हमार ममहर कुतुबपुर भइल। सौभागय से हमरो जन्म ओहिजे के पवित्र धरती पे भइल।
नया-नया लइकन के मेहरारू के रोल में मंच पे प्रस्तुत करेके प्रयोग सफल आ बहुते रोचकता से भरल रहे। नाटक के सूत्राधर के रोल भिखारी ठाकुर करत रहलें। खाली, सूत्राधरे ना कई गो नाटकन में अभिनेता के भूमिका भी निभावत रहलें। बिदेशिाया में बटोही, गबरघिचोर में पंच। बेटी-वियोग में पण्डित, राधेश्याम बहार में बूढ़ सखी आ कलियुग-प्रेम में नशाखोर पति आदि। साल दू महिना सावन-भादो में सभ कलाकार, गायक आ वादक के प्रशिक्षण शिविर चलत रहे। जिला सारण चन्दनपुर गाँव में स्व० बाबूदयाल के दलान भिखारी ठाकुर के प्रशिक्षण शिविर के रूप ले लेत रहे।
भिखारी ठाकुर के सउँसे नाटकन में नारी के स्थान सर्वोपरी बा। पति के परदेश चल गइला के बाद भी अपना बल पे आपन भरण- पोषण् करेवाली बिदेशिया के नायिका । प्यारी सुन्दरी पति धर्म के रक्षा करत बाड़ी। कलियुग-प्रेम में नशाखोर पति के अत्याचार बर्दाश्त करते हुए पति के परमेश्वर मानत बाड़ी। बेटी-वियोग में कमसिन अखाजो नायिका के देखीं। बूढ़ सम्पन्न किसान के आपन पति मान उनकर निष्ठापूर्वक सेवा करत बाड़ी। विध्वा-विलाप में उहे नारी पट्टीदार लोगन के अमानुष वाला अत्यााचार भोगत नजर आवत बाड़ी। गंगा-स्नान में सास-पतोेह के धृणास्पद व्यवहार देखेके मिल जाई। राधेशयाम बहार में कृष्ण के ओरहन सुनके भी कृष्ण से स्नेह ममतामयी स्वरूप के उजागर देखल जा सकेला। पुत्र-बध में साफ-साफ समाज के दर्शन बा। गहना, कपड़ा आ लाली-ओठलाली के मोह में फंसल नारी । आ ऊ नारी क्रूरता के कवनो हद तक जा सकत बाड़ी।
भिखारी ठाकुर नारी के दुःख-दरद के के चित्रण बड़ी नाीक आ लगन से कइले बाड़न। गबरघिचोर के प्रस्तुती जे एक बेर देख लिही ओकर आँखि से लोर ढरकले बीना ना मानी। जेकर पति भरल जवानी में छोड़के परदेश चल जाता । पन्द्रह बरिस बाद वापस आवता । एही बीच विरहिणी के कोई से स्नेह-संबंध से पुत्र के प्राप्ति हो जाता। लाख समाजिक ताना लोगन के नीच निगाह। परवाह कइले बीना ओह पुत्र के आपन सहारा मनली। पालत-पोसत, संघर्ष करत एक दिन ओहि नारी के जीत होखत बा। परिवार के आत्मा मान के भिखारी जी नारी के हर रूप के स्वीकार करत बाड़न। बिदेशिया में नारी के वेश्या-रूप के चर्चा करके वेश्या-प्रथा के खत्म करे के रास्ता भी देखवलें।
भिखारी ठाकुर के जन्म पिछड़ा वर्ग के नाई जाति में भइल रहे। नाई अइसन जाति हउए जेकर जीवन गृहस्थ्य पे आश्रित होखेला। गाँव-गाँव घूम के नेवता-बोलाहटा गृहस्थ्य के पूरे परिवार के हजामत बनावे के काम करेला। शादी-विआह, तिज-तेवहार ईहां तक कि मरनी में भी नाई के अहम भूमिका होखेला। ऊपर से दबगं आ सामंत लोगन के डांट-डपत आ गाली-गलीज भी सुनेके। भिखारी ठाकुर एह संकट से रू-ब-रू भइलन। त एह समाजिक समस्या से उबरे के रास्ता खोजे लगलन।
भिखारी ठाकुर के लोक नाटक के मुख्य लक्ष्य दलितन के समाजिक-आर्थिक समस्यन के उजागर करेके। ओहमे नया चेतना के शक्ति भरे के प्रयास रहे। नाटक के पात्र लोगन के नाम भी ओइसने बा। जवन दलित वर्ग में सुने के मिलेला – उपदर, उदवास, झाँटूल, चटक, चेथरू, अखाजो ……..।
उनकर मंडली के सदस्य लोग भी दलित आ पिछड़ा वर्ग से आवत रहे। नाटक के सदस्य आ पात्र के नाम भलहीं दलित आ पिछड़ा वर्ग के प्रतिक रहे । लेकिन नााटक के विषय समाजिक आ सभके लायक रहे।
ठाकुर जी के गाँव पहिले आरा भोजपुर जिला में रहे बाद में गंगा जी के कृपा से छपरा में हो गइल। उनकर लिखल कवित- आरा जिला ममहर ससुरार फुफहर , आरा जिला पुरोहित गुरू आरा परिवार है। आरा जिला राजा दिवान छड़िदार , आरा जिला में बधार है।
थाना बड़हरा आरा छपरा का मध्य माहिं, परत करिब चकियां मटुकपुर बाजार है। ढह कर कुतुबपुर गाँव बसल दियरा में, तबहीं से भिखारी कहत भिखारी प्रचार है।
भिखारी ठाकुर के मातृभषा भोजपुरी रहे। भोजपुरी माटी से अइसन नेह लागल कि भोजपुरी जनपद के लोगन खतिर अति प्रिय हो गइलन। कहल जाव त भिखारी से हीं भोजपुरी के असली पहचान मिलल। अइसन भिखारी कइलन तमासा। फइल गइल भोजपुरी भाषा।। भिखरी ठाकुर के लिखल लगभग २९ गो किताब में अथाह कवित, चौपाई, दोहा ……के सागर भरल बा।
भिखारी ठाकुर के भक्ति भाव आ मान-सम्मान
तुलसीदास के आपन काव्य गुरू मानेवाला भिखारी ठाकुर के आदर्श तुलसीकृत रामचरित मानस रहे। तुलसीदास, सूरदास, मीरा, रहीम, रसखानआ कबीर लोगन के रचना त जीभे पे याद रहत रहे। राम भक्त भिखारी ठाकुर के रामलीला-रासलीला आ जात्रा से बहुते प्रेरणा मिलल। शिव-विआह में शिवजी आ अवरू जगह पे गणेश। देवी, ग्राम देवता, कुल देवता लोगन के प्रति भी उनकर भक्ति देखल गइल बा। माई के जीवित आ साक्षात देवी के रूप में मानत रहलें।
द्वितिय विश्व युद्व के दौरान युद्व-कोष जुटावे खातिर ब्रिटिश नौकरशाही भिखारी के इस्तेमाल कईलस। ओह समय जपह-जगह ऊनकर तमासा खुब भइल। शाहाबाद जिला के कलक्टर सहयोग खातिर भिखारी ठाकुर के राय बहादूर के उपाधि दिहलन। बाद में ब्रिटिश सम्राज्यवाद के जब पोल खुलल । तब भिखारी बहुत दुःखी भइलें। महापण्ड़ित राहुल सांकृत्यायन अंग्रेजी के प्रसिद्व नाटककार शेक्सपियर से तुलना कईलें । सन् १९४७ में भिखारी ठाकुर के भोजपुरी के शेक्सपियर के उपाधि दिहलन। राजभवन पटना में २४ जनवरी १९५४ में बिहार के राज्यपाल भिखारी ठाकुर के ताम्र-पत्र आ अंग-वस्त्र समर्पित करके सम्मानित कइलें। सत्तर बरिस के उम्र में बिदेशिया नाटक पे बिदेशिया सिनेमा बनल। आख़िर में भिखारी जी सनयास लेत कहलन कि- बहुत दूर ले भइल नाम । अब ना करब नाच के काम ।। १॰ जुलाई १९७१ सनीचर के दिने हमनी के छोड़ के चल गइलें।
परिणम स्वरूप आज भिखारी ठाकुर के नाम पे हजारन संस्था बनल बाड़ी सं। भिखारी के नाम पे पटना में यारपुर ब्रीज, छपरा में बाईपास रोड़ के मोड़ पर भिखारी चौक। ओहिजा तिनगो साजिन्दा के साथे भिखारी के आदमकद मूर्ति लागल बा। पूर्वेातर रेलवे के गोलडीगंज स्टेशन पे उनकर संक्षिप्त परिचय लिखल बा। छपरा- पटना मुख्य सड़क पे उनकर गाँव के ओर मुड़े वाली सड़क के नाम भिखारी ठाकुर पथ रखाईल बा।
भिखारी जी के बारे में जेतना लिखाइल जाइ कलम के स्याही कम पड़त जाई।तबहू लिखल अधूरा हीं रह जाई। कहेकि कतहीं ना कतहीं , कवनो ना कवनो पक्ष छूटिये जाई। एही से ई महान कलाकार के आत्मा के हम परनाम करत बानी। रउआ सभे से विदा लेत बानी ।इहे कहत – जय-जय भिखारी! जय-जय भिखारी!
भिखारी ठाकुर । जन्म सन् १८८७ , गाँव- कुतुबपुर , जिला- सारण छपरा , बिहार । पिता- श्री दलसिंगार ठाकुर, माई- श्रीमती शिवकली देवी , पत्नी – श्रीमती मनतुरना देवी, पुत्र – शिलानाथ ठाकुर।
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