31 जुलाई 19 को भोजपुरी नाटक ‘वैर का अंत’ का मंचन हुआ । गोल मार्केट के नजदीक मुक्तधारा ऑडिटोरियम खचाखच भरा हुआ । लोकजीवन के रंगों से सराबोर नाटक दिल को छूने में सफल रहा । धरातल के जमीन पर गढा हुआ भाव दर्शकों को डुबोता रहा । लोग चुप्पी साधे देख रहे थे । बीच – बीच में ताली बजा कर कलाकारों को प्रोत्साहित कर रहे थे । जब दिल में वैर का बीजारोपण होता है , उसका अंत भी निश्चित हो जाता है । प्रेमचंद की यह कहानी बहुत हीं मार्मिक भाव में सराबोर है । जिसे भोजपुरी नाटक के रूप में देखने को मिला । कहानी का नाट्य मंचन तन और मन से किया गया । दर्शकों के दिल में उतरने की एक कोशिश सराहनीय रही ।
‘वैर का अंत’ मूलतः प्रेमचंद की चर्चित हिंदी रचना है । भोजपुरी में नाट्य रूपांतरण कर इसे प्रेमचंद के जन्मदिवस पर मंचित किया गया । जन्मदिवस मनाने का यह भी एक अनोखा अंदाज था । जिससे, लोगों को अपनी ओर खींचने में कामयाब रहा । भोजपुरी भाषी लोक में विश्वास करते हैं । इसकी लोकप्रियता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है ।
हिन्दी नाटकों में अभिनय करने वाले , अब भोजपुरी को भी अपना रहे हैं । अब वही भाव यहाँ भी देखने को मिल रहे हैं । हिन्दी से कम दमदार नहीं होता इसका मंचन । लेखन कला की अगर हम बात करें तो हम जरूर पीछे हैं । भोजपुरी नाटकों और नाटककारों की कमी खलती है ।
रंगश्री हिंदी – भोजपुरी नाट्य संस्था ने इसे प्रस्तुत किया । निर्देशक महेन्द्र प्रसाद सिंह थे । कलाकार सौमित्र वर्मा , लावकान्त सिंह , अखिलेश पांडेय , उपेंद्र सिंह चौधरी , वीणा वादिनी ने दर्शकों से सराहना बटोरी । नम्रता सिंह , किरण अरोड़ा एवं अन्य कलाकार ने भी अभिनय योगदान दिया ।
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ओमप्रकाश अमृतांशु
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