Artist - Omprakash Amritanshu
भूखल देहिया डहके सड़किया पे ,
तड़पेला आदमी के जतिया । हो रामजी ।।
1
जेठ दुपहरिया के दवंके बेयरिया हो
लूकवा चलेला जइसे बरिसेला अगिया हो
छन – छन जरे जिउवा , अदहन बा पनिया से ,
2
अँखुआइल सपना गँउवा रे घर के
निकलल भीड़वा शहरिया के छोड़िके
सिर पे मोटरिया बा , पग – पग विपतिया
3
गोड़वा के जूतावा – चप्पलवा चिथड़ी भइले
डेगवा बढ़े ना अब , फोड़वा फफकी गइले
खोभेला करेजावा में बरछी इंकड़िया हो
4
दुधमुँहा बाचावा गोदिया में छछने
फेफड़ी परल बा पारानवा में खखने
छटपट करे छट – पट पानी बिन मछरिया
5
आइल रे कोरोनावा , लेआइल कइसन दिनवा
लॉकडाउन भइल प्रवासी के जानवा
रोटी – रोजगारवा पे चलले कुदरिया
6
मजदूर लोग काहे भइल मजबूर बा
सुनी ! हे सरकार कवन हमरो क़सूर बा
का लिलरा पे लिखल ना मिटिहें ग़रीबीया ?
लॉकडाउन के समय प्रवासी मज़दूरन के जवन गींजन भइल , उ देख के हमसे रहल ना गइल । रउरो दिल में कहीं ना कहीं चोट लागल होई । हम रचनाकार – कलाकारन के आत्मा भावुक होखेला । कलम जाग जाला । ब्रश दिल के कुरेदे लागेला । इंसान के झुण्ड भूखल देह सड़क पर चलेके काहे मजबूर भइल । आपन घरे – दुआरे जाए के सभे के मानवीय भावना होखेला
महामारी कोरोना के चलते लॉकडाउन के साथे – साथे प्रवासी मजदूरन के जीनिगी भी लॉक हो गइल । रोज़ कमा के खाए वाला आदमी के रोजगार रोटी पर आरी – कुल्हाड़ी चल गइल । केहू के मकान मालिक खदेरलस । केहू के कमाईल पईसा मालिक लोग देवे से मना कर दिहलस । एह प्रवासी मज़दूर लोगन पर चारों ओर से बिजली गिरल । ना खाए के ठिक । ना रहे के ठिकाना । घरे जाए के साधन बस आ ट्रेन सब कुछ बंद । एगो अंतिम उपाय यही देखाई देलस । जवन आपना हाथ में रहे लोग उहे कइलस । हजार – हजार किलोमीटर पैदल चल के मजदूर लोग आपन घर – दुआर जाए लागल ।
बार – बार एगो सवाल उठता मन में कि लिलार पर जवन ग़रीबी के मुहर लागल बा कहिया ले मिटी ?
राउर प्यार हमके लिखे खातिर उत्साहित करेला । कृपया करके आपन प्रतिक्रिया जरूर दिहीं ।
ओमप्रकाश अमृतांशु
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