Artist- Omprakash Amritanshu
हिन्दु धर्म में सूर्य के साक्षात देवता के रुप मानल जाला। यजुर्वेद में ‘चक्षो सूर्यो जायत’ कहके सूर्य के भगवान के आँख मानल गइल बा। गीता में ‘ज्योतिषां रविरंशुमान’ कहल गइल बा। सूर्य के शक्ति के मुख्य स्रोत उनकर पत्नी उषा आ प्रत्युषा हई। छठ में सूर्य के साथे-साथे दूनो जानी के अराधना होखेला। भोर भिनुसार में सूर्य के पहिलकी किरण उषा के अरघ देके आराधना कइल जाला। सांझ काल में यानी सूर्य के अंतिम किरण प्रत्युषा के अरघ देके नमन कइल जाला। लोक परम्परा के अनुसार सूर्य देव आ छठी मईया के भाई-बहिन मानल जाला। लोक आस्था का ई परब बड़ी धूम- धाम आ आस्था के साथे मनावल जाला।
पुराण के एगो कथा के अनुसार स्वयंभुव मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत के एकहूँ संतान ना रहे। उमिर खत्म होखत रहे। तब महर्षि कश्यप पुत्रेष्टि यज्ञ करवा के पत्नी मालिनी के प्रसाद के रूप में खीर दिहलन। ओहि खीर खइला से रानी के गरभ ठहरल। कुछ दिन बाद राजा के पुत्र के प्राप्ति भइल बाकिर ऊ संतान मरल रहे। राजा प्रियव्रत ओह मरल पुत्र के लेके संतान गइलन। संतान के वियोग में राजा आपन प्राण तेयागे के आतुर हो गइलें। ठीक, ओहि समय मणी के समान विमान पे ब्रह्मा के मानस पुत्री देवसेना परगट भइली। राजा से कहली हम सृष्टि के मूल प्रवृति के छठवा अंश से भइल बानी। राजा तु हमार पूजा करऽ आ आउर लोगन के पूजा करे के प्रेरित करऽ।
राजा हँसी-खुशी घरे गइलन। सभ लोगन के षष्ठी देवी के पूजा करे खातिर कहलन। बड़ी धूम-धाम से देवी षष्ठी के पूजा अर्चना भइल। फिर से राजा के पुत्र के प्राप्ति भइल। ई पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी के भइल रहे। तबहीं से ई लोक आस्था के परब छठ के नाम से मशहूर भइल। साल में दू बेर मनावे जाये वाला छठ परब के महातम आज दूनिया में मशहूर बा।
परम्परा आ महत्व
छठ पूजा के परम्परा आ महत्व रामायण, महाभारत आ पुराण में भी देखे के मिलेला। एगो मान्यता के अनुसार लंका पे विजय प्राप्त कइला के बाद रामराज्य के स्थापना भइल । षष्ठी के दिन भगवान राम-माता सिता भी उपवास रह कि सूर्यदेव के उपासना कइली। सप्तमी के दिन सूर्योदय के समय फिर सूर्य के पूजा करके आर्शीवाद प्रप्त कइलस लोग।
महाभारत के अनुसार कहल जाला छठ परब के शरूआत महाभारत काल से भइल रहे। सबसे पहिले सूर्य पूजा माता कुन्ती कइली। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त के साथे-साथे पुत्र भी रहन। एगो कथा के अनुसार जब राजा पांडव सारा राजपाट जुआ में हार गइल रहे लोग तब द्रोपदी छठ के वरत रखली। छठी मईया आ सूर्य देव के किरिपा से पांडव लोगन के राजपाट आ सुख-स्मृद्वि मिलल।
भोजपुरी गीतों को अमरत्व प्रदान करने वाले ‘मंजुल’ जी को श्रद्धांजलि…
छठ के वैज्ञानिक रूप
विज्ञान के द्वष्टि से देखल जाव त सूर्य देव के रोग नाश करे वाला देवता मानल जाला। सूर्य किरणन में अनेकन रोगन के नाश करे के क्षमता पावल गईल बा। एगो पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के पत्नी जाम्बवती से भइल पुत्र शाम्ब बहुते सुनर रहन। ऋषि दुर्वासा के सराप से शाम्ब के कुष्ट हो गइल। नारद जी के सुझाव पे सूर्य के उपासना भइल। सूर्य देेव के पूजा अर्चना खातिर शाक्य द्वीप से ब्राह्म्ण लोगन के बोलावल गइल। पूजा अर्चना से शाम्ब कुष्ट मुक्त हो गइलन।
भविष्य पुराण में उल्लेख बा- “ न योग्यरू परिर्यायं जम्बूद्वीपे ममानघ । तन्मगान् मम पूजार्थ शकद्वीपादिहानय ।।”
विज्ञान के अनुसार ओह समय सूर्य के पराबैगनी किरण पृथ्वी पे अधिका मात्रा में एकत्र हो जाला। वायुमंडल के स्तर से होत सूर्यास्त आ सूर्योदय के समय ई आऊरु सघन हो जाला। पृथ्वी के जीव-जन्तु के एहसे बहुते लाभ मिलेला। ज्योतिषी गणना के अनुसार ई घटना कार्तिक आ चईत महिना के अमावस्या के छह दिन के बाद आवेला। ज्योतिषी गणना पर अधारित होखे के कारण भी एकर नाम छठ हीं रखाइल।
परिवारिक सुख स्मृद्वि के प्राप्ति खातिर देवी षष्ठी के पूजा के साथे-साथे सूर्य के उपासना भी कइल जाला। सृष्टि आ पालन शक्ति के देवता हवन सूर्य । सूर्य के उपासना सभ्यता के विकास के साथे अनेकन जगहन पे अलग-अलग रूप में शुरू भइल। सूर्य के वंदना देवता के रूप में ऋगवेद में सबसे पहिले मिलल। उत्तर वैदिक काल के अंतिम काल खंड में सूर्य के मानवीय रूप के कल्पना होखे लागल। पौराणिक काल आते-आते सूर्य पूजा के प्रचलन आउर अधिका हो गइल। अनेक जगहन पे सूर्य देव के मंदिर बनावल गइल। पौराणिक काल में सूर्य के आरोग्य देवता भी माने जाये लागल। भविष्य पुराण में सूर्य पूजा आ मंदिर के निर्माण के महत्व समझावल गइल बा। सूर्य के साक्षात् देवता के रूप में मानल जाला। सूर्य से पृथ्वी पर जीवन आ हरियाली बा। सत्य आ तेज के प्रतीक सूर्य के चराचर जगत् के आत्मा मानल जाला।
पूर्वाचंल के सबसे बड़हन परब के छठ महापरब कहल जाला। सूर्य उपासना छठ परब मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश आ नेपाल के तराई में मनावल जाला। अब त हिन्दू के साथे-साथे दोसर धरम के लोग भी छठ परब के मनावत बा। छठ परब देश के कोना-कोना में मनावल जा रहल बा। खाली भारत देश ना विदेश में भी भरपूर आस्था के साथे एह परब के मनावल जाला।
छठ पूजा में छठ के पारम्परिक गीतन के सबसे अधिका महत्व बा। गीत के बगैर पूजा अधूरा-अधूरा सा लागेला। छठ गीत छठ पूजा के श्रृगांर ह। देखीं एगो सुन्दर सा गीत में सुन्दर सा भाव-
”काँच हीं बाँसऽ के बहंगिया , बहंगी लचकत जाय। बाट जे पूछेला बटोहिया, बहंगी केकरा के जाय। तू त आन्हर होईबे रे बटोहिया, बहंगी छठी मईया के जाय….“
अइसहीं एगो आऊरी गीत के भाव राउरा सभे के देखावत बानी – ‘केलावा जे फरेला घवद से, ओह पर सुग्गा मेडराय । सुग्गावा के मारबो धनुष से सुग्गा जईहें मुरूछाय । सुगिया जे रोयेली वियोग से सुग्गा हवें हो हमार ……’
ओमप्रकाश अमृतांशु
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