बाल चित्रकला
ओमप्रकाश अमृतांशु-
बाल मन के चंचलता आ निश्छलता एह प्रकर से उद्वेलित करेला । कबो ऊ पल भर में खुला आसमान में उड़े के कल्पना करेला । त कबो आपन भीतर छिपल भावना के मूर्त रूप में ढ़ाले के कोशिश करेला। कबहीं अपना आस-पास के प्राकृतिक सुन्दरता के कागज के टुकड़न पे चिपकावल चाहेला । त कबहीं मानव आकृति बनावत समय रेखन के समवत प्रयोग से हास्य पैदा करेला । बतावत बाड़न आपन हिन्दी आलेख में चर्चित चित्रकार आ कला समिक्षक भुनेश्वर भास्कर-
रेत, धूर आ गील माटी पे दउड़े, खुशी से गोड़ के पटके । बार-बार गोड़ के तलवा के रगड़ला के बाद फलक पे कुछ रेखा उभर जाला। रेत के कण के अँगुरी से चीरला के बाद रेत के बीच में पड़ल लकीर । चाहे गोड़ के छाप देखला के बाद एगो आकृति के रूप में दृष्टिगोचर होखेला। निशान के रूप में उभरल रेखा कबो-कबो कला के स्रोत बनी, समझ पावल मुश्किल रहे। तब शायद ओह आकृतियन के रेखा या आकृति कहे के रिवाज ना रहल होेई। एहके रेखा नाम से संबोधन भी ना कइल जात होई।
समय- अंतराल के बाद चिन्ह के रूप में चिन्हित कइल गइल। ओकर महत्व समझल गइल । जीवन के साथे जोड़ के अपने आप के अभिव्यक्त कइल गइल । दूसरा के समझावे आ विस्मृत पहलुअन के आकार-रूप में प्रस्तुत करे के कोशिश कइल गइल। तब से आज तक अनगिनत रूप में रेखाकंन आज हमनी के साथे बा।
क- ख– ग -घ पढ़ते पढ़ते..
कोमल-कोमल, सुनर-सुनर, नन्हीं-नन्हीं हाथ के अँगुली कवनो तख्ती पे एह तरे घूमेले कि तख्ती आ अँगुली के स्पर्श से कुछ रेखा बन जाला । कुछ आकृति उभर जाला। यदि हाथ में कवनो अइसन वस्तु होखे जेकरा के रगड़े से कवनो चिन्ह चाहे ओकर रंग तख्ती पे लाग जाए त रंगन के समवेत प्रभाव से आकृति बन जाले। खेल-खेल में लड़िकन द्वारा बनावल रेखन-चित्रण के बाल चित्रकला कहल जाला।
बाल मन के रचल चित्र-कलाकृति कई मायने में उल्लेखनीय होखेला। बच्चा जब चित्र उड़ेहे बईठेलन सं त स्वाभाविक, सहज आ स्वतःर्स्फूत तरीका से लकीरन के ताना-बाना बुनेलन सं। देखते-देखते पल भर में फलक रंग-रेखा से भर जाला। जाने-अनजाने में केतना महत्वपूर्ण चीजन के प्रस्तुति देखल जा सकेला, जेकरा सहारे लड़िकन के कल्पनाशीलता, सोंच आ दृष्टि के महसूस करे के मिलेला।
बालमन के चंचलता आ निश्छलता कबहीं पल भर में उन्मुक्त गगन में उड़ान भरे के कल्पना आ कबो अपना भीतर छिपल भावना के मूर्त रूप में ढाले के कोशिश देखते बनेला। कबहीं आपन आस-पास के प्रकृतिक सुन्दरता के कागज के टूकड़ा पे चिपकावल चाहेला त कबो मानव आकृति बनावत समय लकिरन के समवेेत प्रयोग देख के हँसले बिना रहल ना जाला। काहे से कि इ सब प्रकिया कवनो सुनियोजित ढ़ंग से ना होखे।
बच्चा पहिले से सोंच के रंग-रेखन के व्याख्या ना करेला बल्कि सिर्फ चेतन मन के प्रयोग करत मनमौजी ढ़ंग से तरह-तरह के रूप-आकृति के सिरिजन करेला। ओह दौरान रचनाधर्मिता से संबंधित जवन क्रिया होखेला ऊ कलात्मक दृष्टिकोण से केतना प्रभावशाली बा, एकर अंदाजा शायद बाल मन के ना होखे।
लड़िकन के बनावल अधिकांशतः कलाकृति में रेखा के प्रयोग होखेला। मोट-पातर रेखन से बाहरी ढ़ंाचा बनाके अंदर के भाग में कतहीं-कतहीं पातर रेखा के इस्तेमाल होखेला, जवना से आकृति के भव्यता बढ़ जाला। कवनो तकनीकि व्याकरण आ आकृति के अनुपातिक जानकारी के बिना रेख के उकेरे प्रक्रिया चलत रहेला।
बच्चा मन के सबसे पहिला प्रथमिकता फलक पे विषय-प्ररूप के अनुसार आकृति के रखल आ आपन भावना उड़ेहल होखेला। जवन सिख हमनीयो के लेवे के चाहीं । फलक के कवनो भाग से चित्र बनावत, छोट-बड़, आड़ा-तिरछा रेखा के संयोजन से चित्र संपूर्ण हो जाला। कवनो आकृति बिना दबाव के सहजता के साथे रेखन में बंधाइल चल जाला। आदमी बनावे के बा त सिर, शरीर, हाथ आ गोड़ होखे के चाहीं, बाकिर जरूरी नईखे कि ओकर अनुपातिक आकार का होई। गोल आकार में दू गो बिंदु दुनो आंख के प्रतीक, एगो बड़हन रेखा नाक आ एगो छोट पट लकीर मुंह के दर्शावेला। शरीर छोट लेकिन चौड़ा होखेला। आकृतियन में कहीं-कहीं अति यथार्थ लउकेला। जैसे, फल तुड़त बच्चा के एगो हाथ एतना बड़ा हो जाला कि ऊ असानी से फल तुड़ लेवेला।
नदी-तालाब के ओह पार जाये के क्रम में एगो गोड़ नदी के एह छोर पे त दोसर गोड़ नदी के ओह पार वाला छोर पे बन जाला। छप्पर पे मछरी तैरत नजर आवेली सं। पशु-पक्षियन के बनावट में काफी सहजता लउकेला। एगो चकोर आकृति में एक तरफ मुंह आ दोसरा तरफ में चार गो रेखा, चारो गोड़ खातिर आ एगो रेखा पोंछ के प्रतीक के रूप में तोता, हंस आदि के भी ओकर रूपाकृति में उपस्थित कइल जाला। पानी खातिर दू-चार गो रेखा, पेड़-पौधा आ पता के एहसास करावे खातिर सीधा आ गोल-गोल रेखा के इस्तेमाल होखेला।
लड़िकन खातिर कला भाषा के जइसन होखेेला। कहल जाव त बच्चा पूरा तरह से ना बोले वाला बालकन के पढ़े-लिखे के व्यवस्था ना होखेेला। रंग रेखन के माध्यम से आपन मनोभाव के अभिव्यक्त करेला सभेके बालक मन। केतना बेर अइसन देखल गइल बा कि जवन लड़िका-लड़िकिन के क्षैक्षणिक शिक्षित नईखन, मूक-बधिर बाड़न। बोल-सुन ना सकेलन, बाकिर रंग-आकर में सिद्वहस्त पावल जालन।
बचपन में भलहीं पारिवारिक-सामाजिक यातना के शिकार रहल बचपन मन के सृजनक्षमता के बल पे अलग मुकाम हासिल होखेला। हम ईहां कह सकतबानी कि कला आंतरिक दुनिया के उत्पति ह। आंख मूदला के बाद दृष्टिगत दुनिया के प्रस्तुत करे के काम कलाकार करेला।
आज देश के केतना प्रतिष्ठित कलाकार मानेलन कि कला के प्रति उनकर रूचि बचपन से रहे। तब शायद उनकरा पता ना रहे कि कला का होखेला ? रेखा के भूमिका का ह? आड़ा-तिरछा, उलझल-सुलझल रेखन के तह में जाये के इच्छा लेके कला के दुनिया में प्रवेश कइलन। उनकर शुरूआत भी बालकला से हीं भइल। एहसे बालकला के वृहत पैमाना पे देखे के जरूरत बा। काहे से कि ओहि आड़-तिरछा कलाकार छूपल बा। जवन बच्चा तनी बड़ हो जालन उनकर कलाकृति में रेखा के साथे-साथे रंग के प्रयोग भी होखे लागेला। यानी कलाकृति के बाहरी रेखा के अन्दर आकृति से संबंधित सपाट रंग लउकेला। ज्यादातर रंग चटकीला बाकिर आंख के मोेहे वाला होखेला। पृष्ठिभूमि के रंग बालमन के नजर के अनुसार बदलत जाला।
लड़िकन के कलाकृतियन के कला के परिप्रेक्ष्य में अलग-अलग दृष्टिकोण से देखल जा सकेला आ देखे के जरूरत बा। बाल चित्रकला के निर्मिति निर्देशन के दौरान अलग-अलग वर्ग के लड़िकन के कलाकृति के देखे के मौका मिलल। उनकर कलाकृतियन के बीच से गुजरल एगोे अलग अनुभूति के अहसास होखता।
कलाकृति के विषय आ आकृति बनावट उनकर जीवन-शैली आ आस-पास वातावरण के अनुरूप बा। कलाकृतियन के आकृति उनकर घर-परिवार आ समाज से आईल बा। जवन उनकर दशा-स्थिति के प्रतिबिंबित करता। उ आपन जीवन-दर्शन, जीवन-संघर्ष आ सपना सकार करत नजर आवत बाड़न। उनकर बेचैनी,त्रासदी, हताशा के अलावा समाजिक असमानता के दंश भी चित्र में नजर आवता। अलग-अलग भागन में देखे के क्रम में सबसे पहिले उ बालमन के जवन अनपढ़ आ मजदूर वर्ग से बाड़न यानी जे कबहीं स्कूल ना जाके मेहनत आ मजदूरी में लागल बाड़न।
जब कभी मौका मिल त देवाल, दरवाजा आ जमीन पे झिटका से आपन भावना के रेखा में बदल देवेलन। अगर ओह लोगन के कागज-पेंसिल दिहल जाव त उत्सुकता के साथे खुशी मन से ढ़ेर सारा रेखा खींचाए लागेला, जेकरा से उनकर मनोस्थिति उभर के सामने आवेला। कलाकृति के अवलोकन करत समय देखल गइल कि कलाकृति में हाथी, आदमी, चिरई, टूटल-दरकल देवाल, माथा पे बोरा लेत बच्चा, सामान ढ़ोअत आदमी, गाय-बकरी चरावत चरवाहा, बालक, कुआँ, रेक्शा, घर, गमला आदि मुख्यरूप से नजर आवेला।
परिणाम स्वरूप बच्चा जवन स्थिति परिवेश में रहेला या ओकरा साथ जीवन यापन करेला, ओकरा में कुछ आकांक्षा कुछ सपना भी समाहित होखेला जवन कवनो-कवनो रूप में प्रस्फुटित होखत रहेेला। कवनो आकृति में पक्षी, जानवर के साथे मावन आकृति के भी देखल जाला। एकरा से हम ओह बच्चन के पैनी नजर के अंदाजा लगा सकिलां। भलहीं अक्षर से उनकर संबंध नईखे बाकिर उनकर चित्र में सहजता लउकेला।
हरा-भरा खेत-खरिहान, नदी-तालाब के कल्पना लेके गाँव के बच्चा खेत में काम करेवाला आदमी, हरवाह, रोपनी-कटनी करत मेहरारूअन के श्रम के बात भी करेलन सं। कृषि संबंधित काम के बीच ओह बच्चन के लालन-पालन होखेला। कबहीं पेंड़ के छांह में त कबहीं कड़कड़ात घाम आ झमझमात मौसम में उनकर सहभागीता रहेेला, जेकर असर मन-मस्तिष्क पे भी पड़ेला। जब उ चित्रण करे बइठेलन त अचानक सउंसे दृश्य चित्र फलक पे उभर जाला। एकरा अलावा जीव-जन्तु, आदि के प्रति भी इनकर गहिरा लगाव देखल जाला। बालमन कई तरह के गवई खेल के कल्पना करत नजर आवेलें।
केतना खेलन में रेखा के प्रयोग भी होखेला, जइसे कि छिती-तिती, चिन्ह-चिन्होरिया, सिरगिटान, नव गोटिया आदि। खेल-फॅार्म के भी आपन कलाकृति में शामिल कर के आपन कल्पनाशीलता के परिचय देवेलन सं। इनकर कलाकृतियन पे समग्र नजर डालल जाव त गंवई जन-जीवन, माहौल आ रहन-सहन ज्यादा लउकेला।
छोटा-छोटा कस्बा जेकरा के हम ना त शहर कह सकिलां ना गाँव। गाँव के आनंद ओतने बा जेतना शहर के। ओहिजा के बच्चा के कलाकृति में सबसे ज्यादा द्वंद्व नजर आइल। कहल जाव त जइसन स्थिति, जइसन अनुभव वइसन विषय। कूछ बाल मन के चित्र-सृजन के क्रम में आपन परिवेश के अनुसार पारिवारिक स्थिति महत्वपूर्ण बा। कुछ बालक मन परब-तेवहार के केन्द्र में रखके उत्सवनुमा माहौल के चित्र के रचना करेलन।
प्राकृति के प्रति भी इनकर अथाह प्रेम नजर आवेला। कतहीं गाँव के भूलाईल-बिसरल याद रेखा में बंधाइल, त कतहीं मोटरगाड़ी आ रेल के इंजन के चित्र भी नजर आवेला। देखनी कि एकाध कलाकृति में बड़हन वलय लेके बच्चा आपस में खींचातानी करत बाड़न सं। कुछ कलाकृति में दूर्गा पूजा, सरस्वती पूजा के चित्रण भी मन मोहलस। एहिजा देवी-देवता लोगन के प्रति आस्था हीं कहल जाइ कि बच्चा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आपन भावना के चित्र रूप में ढ़ालेलन सं।
दिन-प्रतिदिन आधुनिक विकास हो रहल बा। नया-नया उपकरण प्रयोग में आवत बा। जीवन-शैली बदल रहल बा। भाग-दौड़, भीड़-भाड़ आ चकाचौंध के बीच हमनी के नजर एगो कल्पित ख़्वाब के प्रति ललायित बा। ओकर हिस्सा बने खातिर हमनी के हर संभव कोशिश कर रहल बानी जा। एकर सीधा असर शहर के बालमन पे ज्यादा लउकेला।
बचपन से सुख-सुविधा, आराम के वस्तु, मौज-मस्ती में लीन बालकमन के कलाकृति में कई तरह के बदलाव आ नया-नया उपकरण- वीडियो गेम, कार्टून, टी0 वी0, फ्रीज, कुलर, फोन, ए0 सी0, लैपटॉप, बड़हन- बड़हन गाड़ी के उपस्थिति ज्यादा बा। चित्र के देखीं कहीं-कहीं बच्चा बड़ा-बड़ा इमारत के निहारत बा त कहीं हवाई जहाज के यात्रा भी करता। खेल के रूप में वीड़ियो गेम आ क्रिकेट के ज्यादा समावेश बा। कपड़ा के बनावट में सूट-पैंट के अलावा टी-शर्ट आ अति आधुनिक पश्चिमी फैशन के प्रभाव लउकता। ज्यादातर बालमन शहरी जीवन से प्रभावित बाड़न। अइसन महसूस होखत बा कि बालक मन जवन देखेला, अनुभव करेला ओकरा भीतर जवन मनोभाव बनेला, ओकरा अभिव्यक्ति चित्र के माध्यम से करेला।
आज बाल चित्रकला के बड़हन फलक पे देखे, समझे आ व्याख्या करे के जरूरत बा। जवना से उनकर भावना से रू-ब-रू होखल जा सके। एकरा साथे विषय आ तकनीक के संदर्भ में या रचना प्रक्रिया से संबंधित जवन शर्त बा, जवन व्याकरण बा, ओकर समग्र जानकारी बालमन के चाहीं ताकि, बालकमन के रचना में गंभीरता के साथे-साथे कलात्मकता के समावेश हो सके।
हिन्दी आलेख के भोजपुरी में अनुवाद-
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