Artist- Omprakash Amritanshu
किरिन डूब गईल । साँझ हो गईल। अन्हार होखे लागल। गाँव के हर गली – मोहल्ला में बाल समूह गान गूँजे लागल। होली के सतरंगी रंग में सम्हत ( होलिका जलाने की सामाग्री ) माँगेंगे के उमंग में झूमें लागल लड़िकन के टोली । एकर मतलब होली नज़दीक आ गइल। रंग चढ़े लागल छोटे – छोटे लड़िकन पर। बाल – गोपाल के कंठ से निकले लागल समत माँगे वाला सुरीला गीत-
अब के आपन केवाड़ी गोबर के करवावल चाही ? के नन्हामन के सराप आपन माथे चढ़ावल चाही ? ख़ुशी -ख़ुशी सभेकेहू पाँच गो गोईठा निकाल के लड़िकन के झोली में डलिये देत रहे । जे ना देवल चाहत रहे ओकरो मन पसिज जात रहे गीत के बोल सुनके । ना ढ़ोलक – ना झाल । बस नन्हा कंठ के समूह गान। जवन केतना मिठ लागत रहे । कईसे बेयान करीं। करीं त करीं व्याख्या कईसे।
फगुआ गीत – मस्त फगुनवा
भोजपुरी संस्कृति के हजारों रंग के सुर से सराबोर रहे सम्हत गान । जवन स्वार्थ आ द्वैष के अभाव से ग्रसित रहे। भाव रहे त बस प्रेम के । प्रेम भाव से गोड़ लाग के आ आग्रह करके होलिका जरावे खातिर गोईठा (उपला) – लकड़ी जुटावे के । मन भीतर में फ़न मारके बईठल राग-द्वेष , भेद-भाव, ऊँचा-नीचा, जात-पात के भाव ख़ाक करेके। दिल से दिल मिलाके के जश्न मनावे के ।असत्य के जरावे के आ सत्य के सोना जईसन चमकावे के । भाईचारा बढ़ावे के । भाव रहे त बस आपन संस्कृति के आगे बढ़ावे के ।मिल-जुल के होली उत्सव मनावे के ।
नईखे मालूम । हमरो नईखे मालूम कि एह परम्परा के शुरूआत कब आ कईसे भईल। बस एतना मालूम बा कि अब देखे सुने के नईखे मिलत । केकर नजर लागल कि अलोपित हो गईल एतना सुनर आ उत्साह से भरल ऊर्जावान परम्परा ।
प्रेम के रंग में रंगाईल ना केहू होली आइल
एक बात सोंचे वाला बा । एह परम्परा के गढ़े वाला होलिका जरावे खातिर गोईठा-लकड़ी जुटावे के काम नन्हा-नन्हा हाथ के काहे संउपलस ? एतना बड़हन जिम्मेदारी लड़िकन के कंधा पर देवे के पिछे त जरूर कवनो कारण होखी । हो सकेला पहिले ईंधन के अभाव होखत होई । बड़-बुजुर्ग लोगन के धेयान जीविकापार्जन खातिर खेती आ दोसर काम-धंधा पर लागल रहत होई । दिनभर काम करेवाला हारल-थाकल आदमी साँझ के आराम करे खातिर खटिया पर गिर जात होई। अब अईसे में होलिका जरावे खातिर लकड़ी-गोईठा जुटावे के समस्या खड़ा हो गईल होखी। तब एह धार्मिक उत्सव के संकट से ऊबारे खातिर लड़िकन के आगे लिआवे के सोंचल गईल होई।
होली के गीतन से एकदम अलग एह गीत के रचना भइल। सरल -सुगम आ आग्रह वादी एह गीत के रचना के कईलस बतावल बड़ा मुश्किल बा। काहेसे कि केहूके मालूम नईखे। ना कवनो लोक परम्परा के किताब में रचनाकार के नाम बा। ना कवनो धर्म ग्रंथ में । एह गीत के सुनके ख़ाली अंदाज़ा लगावल जा सकेला कि रचनाकार ज़रूर बालमन के निश्छलता से प्रभावित होखी । गीत लिखे खातिर केतना दिनन से प्रयासरत होखी ।
एक ओर जहाँ होली के गीतन में रोमांच – मजाक आ अश्लीलता के भाव होखेला । दोसरा तरफ़ सम्हत माँगे वाला गीत भोजपुरी संस्कृति आ परम्परा के जड़ के मज़बूत करे खातिर प्रेरित करेला। कहल जा सकेला कि एह परम्परा के निर्वाह करे के ज़िम्मेदारी नन्हेंमन के कंधा पर रहे। परम्पर आगे बढ़ल, खुब आगे बढ़ल । तन आ मन से बढ़ल । नेह – स्नेह के रंग चटकीला होखत रहल ।
समय के साथे हर चीज़ में बदलाव होखत रहेला । एकरो साथे ईहे भइल। अब एह परम्पर के कतहीं देखे के ना मिले, ना हीं गीत सुनेके मिलेला। शायद एकर समय पूरा हो गईल।तबहिं त हमनी के बीच से धीरे से अलोपित हो गईल।4G के युग केतना परम्परा के आपन गाल में दबा के चबा गइल। अब त ऑनलाइन हर चीज़ हो रहल बा। होलियो ऑनलाइन खेलीं सभे WhatsApp आ Facebook पर।
ओमप्रकाश अमृतांशु
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