Artist - Omprakash Amritanshu
सपने जो देखी है , मैंने उसे पूरी करूँगी डॉक्टर बनकर अपने गाँव को गौरवान्वित करूँगी ।
बेटी हूँ ! हाँ हूँ तो क्या ? क्या मैं पढ़ नहीं सकती ? किताबें खोल नहीं सकती ? क्यों नहीं इन काले अक्षरों में अपने सपने भविष्य देख सकती ? जर्जर हुई पुरानी पूर्वाग्रह से ग्रसित मानसिकता को बदल कर रहूँगी । डॉक्टर बनकर अपने गाँव को गौरवान्वित करूँगी ।।
हे माँ ! अपनी छाया में मुझे मत लपेटों मेरी कलाईयों में चूड़ियाँ मत सहेजो उन्मुक्त गगन में उड़ने दे हमें भी बोल दो एक बार – जा बेटी अपने लक्ष्य को भेदो , तुम्हारी ममता की मान रखते हुए नारी – सम्मान को सर आँखों पर बैठा कर रहूँगी । डॉक्टर बनकर अपने गाँव को गौरवान्वित करूँगी ।।
चूल्हे – चौके जूठे बर्तनों को तू कब से माँज रही हो माँ , आज भी तुम्हारी नयनों में मोटे-मोटे आँसुओं के डेरा है माँ , संस्कृति और परम्परा की फटी लुगड़ी में बुढी हो गई है माँ , समय से पहले हीं मकड़ी का जाला बना तेरी ये सुन्दर चेहरा है माँ , इन होंठों पर हँसी दिल में गुदगुदी वापस ला कर रहूँगी । डॉक्टर बनकर अपने गाँव को गौरवान्वित करूँगी ।
दर्द से कराहते बुखार में तपते बड़े – बुढ़े – मासूमों को कैसे अनदेखा कर दूँ मैं ? बापू की दमा और कलेजो को खखोरती कूकूर वाली खाँसी से कब तक मुहँ ढकती रहूँ मैं ? अपनी तड़पती हुई आत्मा से कब तक पिछा छुड़ाती रहूँ मैं ? बस ! अब दे दो आशीर्वाद और भर दो हामी इस दु:खित आत्मा की दवा बन कर रहूँगी मैं । डॉक्टर बनकर अपने गाँव को गौरवान्वित करूँगी ।।
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ओमप्रकाश अमृतांशु
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