Artist / Omprakash Amritanshu
अभी-अभी गुलाबी लड़कियाँ की दुनिया से गुजरा हूँ। उनके पीड़ाओं के गुलाबी खुरदरी जमीन पर उतरा हूँ। ब्लीचिंग, फ़ेशियल, मसाज, वैक्सिंग, थ्रेडिंग के नुस्खे अजमा रही है। बदल रही है फैशनिस्टा कि दुनिया बदल रही है। परम्परा, आदर्शो और मूल्यों को दरकिनार कर, कई कड़वे घूँटें जबरन हलक में उतार रही है । बदलाव की आँधी चल रही है। कहीं उनकी दुनिया में होंठों पर मुस्कुराहटें तैर रही हैं। तो कहीं नम हुई आँखों से लड़ रही है लड़कियाँ । अभी – अभी गुजरा हूँ उनके सपने और आकांक्षाओं के संसार से । जहाँ जुगनु बन जगमगा रहे हैं। ये गुलाबी लड़कियाँ अपने पैरों के एड़ लगाकर दुनियाभर में उड़ने लगी है। सच है कि इनके उड़ने से हीं रूमानी हुई है यह दुनिया। उनके रंगीन दीवार चटक रंगों की है – नीली और लाल – गुलाबी। उन पर सीधे और आड़े-तिरछे कई पोस्टर देखते हुए गुजरा हूँ ।लेकिन एक जगह मैं भी ठिठक सा गया हूँ।
युवा कथालेखिका सविता पांडेय का गुलाबी रंग मुक्ति का रंग है। उत्साह और उल्लास का प्रतिक है। स्वतंत्र होकर उछलने का अनुठा एहसास है। तेरह कहानियों का संग्रह है ‘गुलाबी लड़कियाँ ‘। जिसमें अनेकों भावनात्मक लकीरों का प्रयोग बहुत हीं मार्मिक है। अनेकों रंगो का मिलन है। शब्दों की लकीरें दिल को छूते हुए निकलती है। चित्रकार से कथा लेखिका बनी सविता पांड़ेय समाज को नये साँचे में ढ़ालने के लिए प्रयत्नशील दिखती है। पारम्परिक परिधानों में कैद उन महिलाओं से अपील करती हूई दिखती है।
“जानेमन ! बदलो की दुनिया बदल रही है। बदले रहे हैं इसके नियम और कानून। बदल जाओ कि मैं तुम्हारी दुनिया हूँ। बदलो ! कि बदल रहे हैं चाँद-सितारे और नक्षत्र। बदल रहे हैं स्वस्ति वाचन और मंत्रोच्चार के मायने।”
एक अबूझ सी रिलेशनशिप जिसे लिव इन में रहना कहते हैं चर्चा में है।’लाइफ बोले तो’ कहानी दो दिलो की है। जो साथ-साथ रहते हैं पर अकेले-अकेले। एक हीं सिगरेट से धुँए निकालने वाले दो होंठ है। आँसू, थकान, रतजगे, अकेलेपन, खालीपन, चुप्पी, अतृप्ति, बेचैनी के बीच में ‘ मै’ की रेखा। लेखिका समस्त संवेदनाओं के साथ कहानी के भीतर उतरती है। दोनों को अलग कर सम्पूर्णताओं के साथ जीने का बोध कराती है।
लेखिका के कैनवास का रंग बेहद संघर्ष करते हुए स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। ‘मकड़जाल,हँसी और नींद का चित्रण में सुनंदा की हँसी बचाने का एक सार्थक प्रयास। उलझे हुए मकड़जाल में प्रेम पगी गीली हँसी को बचाने की मुहिम छेड़ा है लेखिका ने।
“आने दो न इस सुन्दर दुनिया में। केतकी का फूल बन खिल जाऊँगी तुम्हारे घर में।” वही जो अभी भ्रूण रूप हीं है। वही जो हर पल यह रंगीन दुनिया देखने को व्याकुल है। उसे मारने के लिए सभी एकजुट हो जाते हैं। कोशिश की हमारी तरह वह सुंदर नजारे ना देखे।कहनी चित्र ‘गुलाबी लड़कियाँ ‘ मर्मस्पर्शी रंगों और शब्दों का साहसिक संयोजन है। भ्रूण बचाओ – बेटी बचाओ अभियान का अहम हिस्सा जो करूणा से लबालब है।
नारी मुक्ति और स्वतंत्रता के तमाम क़ानूनी रंग ‘टुन्नियाँ’ कहानी में असहाय दिखते हैं। शुरू में काफी ब्राइट रंगों का संयोजन और बाद में काले गहरे रंगों में दिखती कहानी। लेखिका का मौन विरोध साफ-साफ पढ़ा जा सकता है।
मै अब ‘चाँदनी के फूलों सा भात’ देख टुकड़े-टुकड़े हो चुका हूँ। ऊँची ईमारतों के ठीक नीचे झुग्गियाँ- झोपड़पट्टीयों में पसरी हुई ग़रीबी को देख ऊखड़ सा गया हूँ। क्या पगली ने सचमुच सौदा कर दिया दुधमुंही सी बच्ची का ? सफेद से भात के लिए मालती का अपने आप को समर्पण समाज के मुँह पर तमाचा नही है ? यहाँ लेखिका पीड़ा से युक्त जीवन से संघर्ष करती हुई दिखती है। विरोध का भाव यहाँ भी है परन्तु उसके रंग अलग गहरे घाव से हैं।
‘भागे हुए लोग’ का चित्रण अलग किस्म का है। पुते हुए चेहरों पर आँसुओं की दो लकीरें बहुत कुछ कह जाते हैं। ‘लेते आना फूल’ और ‘मुकुति जनम मोहे नाही’ कहानी चित्रों का भाव चित्रण अत्यंत नाजुक है। ‘गली-गली सिम-सिम’ रहस्य और रोमांच की नई दुनिया में सैर कराती है। जो कौतुहल से भरी और उत्साह से परिपूर्ण कहानी है।
‘ कृष्ण तुम गाओ’ हर सिंगार के फूल। नन्हें मादक फूल दूध सी धवल सफेद रंगो से भरी कहनी चित्र बेहद रोचक है। उल्लासपूर्ण है। चित्रण में मोतियों से सफेद रंगो का इस्तेमाल सजगतापूर्ण किया है लेखिका ने। शब्दों का चयन ओजपूर्ण है। भाव एकदम ताजा कोमल एवं कमसिन है जैसे हर सिंगार के फूल।
निष्कर्ष की सविता पांड़ेय की यह संग्रह सराहनीय एवं संग्रहनीय है।इनकी रचना शिल्प में नई किस्म का भाव है।गहरें दु:ख और पीड़ा से ऊबरने की छटपटाहट है। कहानी गढ़ने की नई तरकीब है। यही कारण है कि मैं बार-बार इनके शब्द भावों को पढ़ने से नही रोक पाता। भविष्य की उड़ान और रंगो में स्मृतियाँ की झलक है।
परिणामत: साहित्य में लेखिका ऊँची छलाँग लगाते हुए नजर आ रही है।
किताब – गुलाबी लड़कियाँ
लेखिका – सविता पांडेय
प्रकाशक – नवजागरण प्रकाशन
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ओमप्रकाश अमृतांशु
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