देखने जा रहा हूँ ‘ कोलाज ऑफ़ लाइफ़’ ।पाँच दिन का नाट्य महोत्सव चल रहा है।तुम्हें भी देखना है तो चल सकती हो। लेकिन, जतरा पर टोका-टोकी ना किया करो। अपना जूते के फिते बाँधते हुए मोंगा राम ने पिछे खड़ी पत्नी से बोला।
पत्नी- ( मुहँ ऐंठते हुए ) जाओ।जाओ। तुम्हीं जाओ। आपसे ज़्यादा नाटक देखी है मैंने । मोंगा राम- तभी तो ढ़ेर सारा अभिनय कर लेती हो। दो सेकेण्ड में आँसू की बरसात से आँचल गीला हो जाता है। कभी दुर्गा तो कभी काली की रूप में नजर आती हो।
पत्नी को छेड़ झट से बाहर निकल पड़ा मोंगा राम। गली से बाहर निकल कर सिधे रिक्शा पकड़ कर नाट्य स्थल पहूँचा। नाटक शुरू होने ही वाला है। कुछ मित्रों से मिला और सबसे आगे नीचे बैठ गया। नुक्कड़ नाटक देखना है तो जमीन पर हीं बैठना पड़ेगा
दिल को झकझोरती – झारखंड की एक लड़की
अभिनव थिएटर, फुलबाड़ी, लखीमपुर असम की ग्यारह सदस्यो की टीम ने “कोलाज ऑफ़ लाइफ़ “ की शानदार प्रस्तुति प्रस्तुत की। नाटक में छोटी-छोटी वस्तुओं से एक सामान्य भारतीय नागरिक के जीवन के सपने , चुनौतियों , संघर्षो को सहेज कर दर्शाया गया। हमारे राजनेताओं के झुठे चुनावी वादों की क़लई खुली। दहेज की समस्या, प्रेम विवाह, दहेज उत्पीड़न, नशाखोरी से बर्बादी को भी बहुत ही सहज तरीक़े से दर्शकों के सामने रखा गया। साथ में असहाय माता-पिता की दुर्गति आदि नाटक का मूल विषय था।
एक तो नुक्कड़ नाटक ऊपर से कड़ाके की ठंढ।फिर भी, दर्शकों ने नाटक से अपने आपको साइड नही किया।सफ़दर हाशमी रंगस्थल दर्शकों की भीड़ से लबालब रहा। नाटक के पटकथा-लेखक और निर्देशक दयाल कृष्ण नाथ हैं।निर्देशन जब अच्छा हो तो अभिनय वाह वाही लूट हीं लेती है। ग्यारह सदस्यों की टीम में निर्देशक दयाल कृष्ण, प्रवीण हाजोंग, तीर्थ रंजन गोगोई, मोहिनी मोहन कालिता, प्रणाब महंत, भास्कर दत्ता, मयूर कृष्ण सैकिया,प्रसेनजित सैकिया, काजल सैकिया, प्रियंका सैकिया और मघेली हज़ारिका ने अपने अभिनय के डोर से सभी को बाँध रखा।स्त्री अभिनेत्रीयाँ पारम्परिक साड़ी-ब्लाउज़ में थी। पुरूष पात्रों को धोती पहने हुए देखा गया।
अभिनय की कोई भाषा नही होती। हाँलाकि नाटक असमिया भाषा में खेली गई। फिर भी, भोजपुर और बिहार के गाँवों की संस्कृति को याद दिलाते हुए दो पात्र दयाल कृष्ण और प्रवीण हाजोंग अपनी बात हिन्दी में रख रहे थे। इससे दर्शकों को नाट्यकला समझने में मदद मिली। संगीत और नृत्य से भरा नाटक दर्शकों को मंत्रमुग्ध करता रहा।
इस अवसर पर दो युवा कवियों अमित शंकर और अमन राज ने अपनी कविताओं का पाठ किया।मंच संचालन पत्रकार और रंगकर्मी शमशाद प्रेम ने किया। नवकुंर के सचिव राजू कुमार रंजन ने जनवादी गीत अपनी टीम के साथ गाया। वरिष्ठ रंगकर्मी धनंजय जी ने निर्देशक दयाल कृष्ण को मोमेंटो देकर सम्मानित किया और राजू कुमार रंजन ने दर्शकों को धन्यवाद ज्ञापित किया।
कला और साहित्य की नगरी है आरा। शफ़दर हाशमी की स्मृति में नवांकुर नाट्य संस्था द्वारा आयोजित पाँच दिवसीय नुक्कड़ नाट्य महोत्सव में असम के साथ-साथ श्रीलंका की नाट्य संस्था भी सिरकत की। लोगों ने असम के साथ-साथ श्रीलंका की नाट्य कला को भी देखा और सराहा। रंगकर्मीयों के दिल में आज भी ज़िंदा हैं शफ़दर हाशमी।
ओमप्रकाश अमृतांशु
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