Birendra Pandey / Artist - Omprakash Amritanshu
भोजपुरी गीतकार बीरेन्द्र पाण्डेय के शब्दों में सभ्य समाज की परिकल्पना साफ – साफ देखी जा सकती है । एक ऐसे गीतकार जिनके शब्द , कहीं भी – कभी भी गुनगुनाया जा सकता है । बिना हिचके किसी भी मंच से गाया जा सकता है । भोजपुरी में एक तरफ अश्लील गीतों का भरपूर भंडार है । ऐसे अश्लील गीतकार जो हमारे संस्कृति पर बदनामी की मुहर लगा चुके है । दूसरी तरफ बीरेन्द्र पाण्डेय के सलील गीतों की माला है । जिसे, हम सुन कर पल-पल गौरवांवित भी होते हैं । क्योंकि बीरेन्द्र पाण्डेय के रचनाओं में लोक के सहज शब्द होते हैं । जो, कर्णप्रिय मधुर संगीत की धुन से सजा – संवरा होता है ।
सिनेमा हो या एल्बम सभी में हमारे सभ्यता की धुन होती है । हमारे संस्कृति की परिकल्पना होती है । तभी तो इन्हें सुनने वाले का कोई वर्ग नही होता । सभी वर्ग के श्रोताओं के होठों पर इनके मीठे गीत – संगीत की गूंज होती है ।
‘कब अइहें दूल्हा हमार’ की अपार सफलता से मिली पहचान । आरा शहर के सिनेमा घर मे गाँव – गाँव से दर्शक इस फ़िल्म को देखने आते । पूरे शहर में इसके सभी गीत – संगीत की धुन सुनाई पड़ती । जो भी सिनेमा देख कर निकलता “जान मारेला ये गोरिया , जान मारेला’ गुनगुनाता रहता । इस सिनेमा की जितनी चर्चा हुई , बीरेन्द्र पांडेय भी चर्चित हुए । समाज में सफल गीतकार के रूप में पहचान मिली । साथ में आरा शहर को एक और लाल की प्राप्ति हुई । जो , भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री में अपने नाम का डंका बजवाया । तब से लेकर आजतक लगभग सौ फिल्मों और एल्बमों के लिए गीत लिखें । भोजपुरी के साथ – साथ हिंदी भजन भी लिखते रहें ।
सेमरिया गाँव मे आज के दिन यानी 20 जनवरी को बीरेन्द्र पाण्डेय का जन्म हुआ । जो कि शहर आरा से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । नदी के मुहाने पर बसा छोटा सा गांव काफी सुंदर है । आकर्षक भी उतना हीं । परन्तु , बरसात के दिनों में नदी अपनी असली रूप में आती है । और गाँव को चारो तरफ सिर्फ पानी हीं पानी होता है । पहले वहां तक पहुंचना काफी कष्टदायक था । मुश्किलें अभी भी है । परंतु बीरेन्द्र पांडेय की एक कोशिश से रास्ता आसान हुआ है । अब एक छोटी सी पक्की सड़क खुद आपको उस गाँव तक पहुंचाएगी ।
बिहार का छोटा सा शहर आरा , जो ऐतिहासिक भी है । इन्होंने इसे नही छोड़ा । ना हीं छोड़ने की कभी ख्वाब भी पाली । बारहवीं की पढ़ाई करने के बाद इसी शहर की गोद मे बस गये । मोती महल सिनेमा हॉल में वितीय कार्यभार देखने लगे । रिटायमेंट के बाद आज भी वहीं पर अपनी सेवा दे रहे हैं ।
वैसे देझ जाय तो भोजपुरी में अनर्गल शब्दों की खूब भरमार है । लोग इसका इस्तेमाल भी खूब किया करते है । एक रचनाकर जब रचनाकर्म करने बैठता है अपने अंतर्मन से सोंचता है । फिर उसे लेखनी के द्वारा मूर्तरूप देता है । वह यह नहीं सोंचता लोग स्वीकारेंगे या नही । उसकी कोशिश रहती है लोक के दिलों को छूने की । उन्हें सभ्यता की ओर ले जाने की । उनके दिमागी भटकाव को दूर करने की । सुंदर परिकल्पना से समाज को सभ्य बनाने की ।
बीरेन्द्र पाण्डेय में यही खास बात है । इन्होंने अपने गीतों में दोअर्थी शब्दों को जगह नही दी । अपनी संस्कृति की जड़ को उन अश्लील कीड़ों से बचाया । जो , अंदर हीं अंदर खोखले कर देते हैं । लेकिन , बाहर से मनमोहक जरूर लगते हैं । वैसे रचनाकारों को मुँह पर तमाचा जड़ते है बीरेन्द्र पाण्डेय । अपनी लेखनी से । अपनी कल्पना से । 67 वर्ष की उम्र में भी फिल्मों में गीत लिख रहे हैं बीरेन्द्र पाण्डेय । सुन्दर समाज की परिकल्पना में आज भी गढ़ रहे है शब्द ।
इनके लिखे गीतों को आशा भोशले , उषा मंगेशकर और अनुराधा पौडवाल ने भी गया । अलका याग्निक , कविता कृष्णमूर्ति ,साधना सरगम और कल्पना ने भी अपनी आवाज दी । श्रेया घोषाल से लेकर सारे गायकों ने इनके गीतों को स्वरबद्ध किया ।
गीतों को संगीत के धुन से चित्रगुप्त और मधुकर आनंद जैसे संगीतकारों ने सजाया । आनंद – मिलिंद , राजेश गुप्ता और सतीश मुन्ना जैसे संगीतकारों के साथ भी काम किया ।
एकदम नई नवेली आने वाली फिल्म ‘ श्रीमान सैंया जी’ है । साथ मे ‘ कुम्भ’ , लव एक्सप्रेस’ और हीरोगिरी भी प्रदर्शित होने वाली है ।
आपको जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
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ओमप्रकाश अमृतांशु
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