Artist- Omprakash Amritanshu
अगर कुछ कर गुजरने की ललक हो तो मनुष्य कोई भी परिस्थिति में सफलता हासिल कर हीं लेता है। बिहार के माटी का लाल वात्सल्य चौहान ने वह कर दिखाया । वह खुद अपने-आप हजार कांटों के बीच से भी रास्ता ढूंढ हीं लेता है। और चल पड़ता है अपने लक्ष्य की ओर। इसे चरितार्थ किया है एक सधारण सा परिवार में जन्म लेकर वात्सल्य ने।
माटी का लाला वात्सल्य चौहान। बिहार के खगड़िया जिले के सन्हौली गाँव वात्सल्य जैसे पु़त्र से पल-पल गर्वान्वित हो रहा होगा। गाँव के सरकारी स्कुल से निकल कर, आई आई टी खड़गपुर में पढ़ते हुए माइक्रोसॉफ्ट में एक करोड़ 20 लाख रूपए के सलाना पैकेज ! निश्चित रूप से 21 वर्षीय वात्सल्य ने अपने माता-पिता, गाँव-शहर, बिहार हीं नही भारत का सिर ऊँचा किया है।
माता रेणु देवी तो सुनकर आश्चर्य चकित हीं हो गई। एक वेल्डर पिता का बहता हुआ पसिना अचानक सुख सा गया, जब उसने सुना बेटा ने बहुत बड़ी सफलता हासिल की है। बस! हद्वय में सुखद क्षण का बेयार बहने लगा। रोम-रोम रोमांचित होने लगा। एक सधारण परिवार लाखें रूपये कमाते-कमाते मर जाता है। यहाँ तो करोड़ो रूपये की बात थी। फिर, भी पिता चन्द्रकांत सिंह चौहान अपना वेल्ड़िग का काम छोड़ना नही चाहते है। अपना छोटा सा काम से बहुत प्यार करते हैं।
इस मुक़ाम को हासिल करने के लिए वात्सल्य को कुछ ज्यादा हीं संघर्ष करना पड़ा । बेगुसराय से 75 प्रतिशत अंक से इन्टरमिडिएट की पढ़ाई पूरी की, तो दिल में इंजीनियर बनने की ललसा हिलकोर मारने लगा। अपने सपने को समेटे वात्सल्य को अपने गाँव-शहर, प्रदेश से दूर राजस्थान के कोटा शहर की ओर रूख करना पड़ा। इसके लिए पिता को लोन भी लेना पड़ा। वात्सल्य की तैयारी चलने लगी।
पहली बार में निराश होना पड़ा। क्योंकि, रैकिंग अच्छी नही आई। दूसरी बार मेहनत रंग लाई और सन् 2012 में 382 वां रैकिंग से फिर खुशीयां वापस आई। वात्सल्य खड़गपुर पहुंच गए। यहाँ कम्प्यूटर साइंस कोर्स यानी बी टेक में दाखिला लिया। कहा जाता है मेहनत का फल मिठा होता है। अंतिम वर्ष में आते-आते वात्सल्य को माइक्रोसॉफ्ट ने लक्ष्य की ओर अग्रसर होने के लिए मौका दिया।
छह भाई-बहनो में सबसे बड़े वात्सल्य को पढ़ने-लिखने का शौक है। अपने स्कूल के प्रिय छात्र रह चुके वात्सल्य पर शिक्षकों को गर्व है। अपने माता-पिता के परिश्रम को आदर्श मानते हुए, आज वात्सल्य को लाखों छात्र आदर्श मानने के लिए प्रेरित हैं। कार्टून धुन इस माटी के लाल को सलाम करता है।
ओमप्रकाश अमृतांशु
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