Cartoonist- Omprakash Amritanshu
( रामदरस जहिया से सुनले बाड़न कि भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल करावे ख़ातिर दिल्ली में धरना बा । इनकर मन फुद – फुदाईल बा । दिल्ली जाये के बेचैनी रोम – रोम में हिलकोर मारत बिया । दिल्ली के मैटरो रेल आ ऊँचा – ऊँचा माल के दरसन करे ख़ातिर मन छटपटईल बा । पिछला साल कवनो कारण से ना जाये सकले रहन । बाकिर अबकी बेर एकदमे मन बना लेले बाड़न । ठान लेले बाड़न कि दिल्ली जाये के बा त जाये के बा । रोज़ कोई ना कोई से दिल्ली के बारे में पूछत रहलें । मन में दिल्ली दरस के रंगीन सपना सजावत रहेलें । सावन के मौसम में आसमान में बदरी नईखे बकिर, रामदरस के हियरा ज़रूर ख़ुशी के रिमझिम फुहार से गिला रहल बा। दिल्ली जाये के सुर में रामदरस आजकाल्ह ‘ लूलिया माँगेले, लूलिया का माँगेले, लूलिया तहरे जइसन लमहर…’ गाना गुनगुनात रहत बाड़न….)
रामदरस – आरे खदेड़ना ! तनी फ़ेसबुक पर देख के बताव त दिल्ली में भोजपुरी के धरना कहिया बा । खदेढड़ना – ( चिहा के ) लूलिया ओहिजे भेंटाई का ? रामदरस – लूलिया ना त एक से बढ़ के एक जूलिया आँख।में किरकिरी बनके चमकिहन सं नू । करिमना कहत रहे मऊराईल दिल के जगावे के बा त एक बेर दिल्ली चल जा भैया । खदेड़ना – बूझल दिया में केतनो धीव डलबऽ त का ऊ ज़री जाईं । जबले बाती डाल के सलाई ना बरबऽ । रामदरस – ( मोछ प हाथ फेरके ) बाती ! तोरा का पता बा । बाती त लाठी भर बा । बस तनी घीवे के कमी बा। खदेड़ना – ऊ त। मुहँ पर परल फेफड़िये बतावता । रामदरस – ( बाल में ककही फेरके ) आच्छा छोड़ ई सब बात । तनी हमार एगो फ़ोटो खिच के फ़ेसबुक पर डाल त । आ। लिखऽ दिहे कि ई रामदरस हवन । दिल्ली जात बाड़न भोजपुरी के होखे वाला विशाल धरना में भाग लेने । तबे नू जंतर – मंतर पर लोग हमरो के चिन्ही । खदेड़ना – चिन्हईला बिना दूबर भईल बाड़ऽ । चिन्हाएके बा नू , त एगो काम करिहऽ । आपने आगे – पिछे पम्पलेट चिपका लिहऽ । बैनर लिखवाके ओकरे कुर्ता – पजामा सिआवा के पहिर लिहऽ । ओकरा बाद गरदन में ढोल लटका के गावत – बजावत जंतर – मंतर पर चढ़ि जईह । तब देखिहऽ सब चैनल वाला तहरे के लेवे लगिहन स । सऊँसे देश चिन्हे लागी । लूलिया – जूलिया सब के सब तहरे पिछे टहले लगिहन सं । रामदरस – ( खिसिआके) ते बोलबे अनरल ? तोर मजकिया हईं हम । टाँग के फेंक देहब नू कि….. ( खदेड़ना लूति लेखा भागलऽ । भागते – भागते कह गईल..) खदेड़ना – 9 तारिख के धरना बा । 8 तारिख के गाड़ी पकड़ लिहऽ ।
( रामदरस के तनी झटका लागल । अपने आप से बतिआवे लगलन । अब दू दिन बड़ले बा । दरजी के दोकान के ओर लमहर – लमहर डेग भरे लगलन । का जाने दर्रजिया कुरतवा सिअलस कि ना …..)
ओमप्रकाश अमृतांशु
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