Artist - Omprakash Amritanshu
हम जिस हुनर में माहिर होते हैं हमारा दिमाग़ उसी के अनुरूप चलते रहता है । हम मान कर बैठ जाते हैं कि हम शायद इसी के लिए बने हुए है । दूसरा कुछ हमारे बस कि बात नहीं। इस सोंच को पूर्वाग्रह कहते हैं । एैसी बात नहीं है कि आपने जो काम पकड़ लिया , आप उसी के लिए बने हो ।
खुली आँखों से सपने देख रहा है..
मेरा एक दोस्त है । उसकी एक झोपड़ी नुमा चाय की दुकान है । दुकान भी माँ की विरासत है। अब उसकी माँ दुनिया में नहीं है। छोटा सा रेलवे स्टेशन के बाहर चाय की दुकान रेलवे के हीं ज़मीन पर है । 25 से 50 ग्राहक के लिए चाय – बिस्कुट बनाता बेचता है । उसकी उम्र 45 के क़रीब है । तीन बेटी – पत्नी के साथ पूरे दिन चाय बिस्कुट के साथ दुकान में हीं जीवन व्यतीत करता है । मैं उससे जब भी मिलता हूँ , कहता हूँ – आर्थिक तंगी में जीवन – यापन करने से अच्छा है कि कुछ दूसरा सोंचो । या इसी दुकान से और भी ज़्यादा आमदनी का ज़रिया बनाओ । आजकल चाय वाले तो लाखों में कमाते हैं । मायूस होकर बोल पड़ता है – यार ! अब तुम्हारे जैसा तो मैं सोंच नहीं सकता । ना कोई दूसरा हुनर हीं है हमारे अन्दर । में शायद इसी के लिए हीं बना हूँ ।
पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्ति की सोंच सिमित हो जाती है । उसका दिमाग़ दूसरा कुछ अलग सोंचना नहीं चाहता । वह यह मान लेता है कि मुझमें ज़्यादा सोंचने कि शक्ति नहीं है । क्या सोंचू ? दिमाग़ चलता हीं नहीं है । वह एक सिमित सोंच के दायरे में गोल – गोल घूमते रहता है । वह इससे बाहर नहीं निकल सकता । क्योंकि पूर्वाग्रह के रोगी एैसे हीं होते हैं । पूर्वाग्रह एक मनोवैज्ञानिक लक्षण है ।
एक सामान्य व्यक्ति में सोचनें कि दायरा असिमित होती है । आवश्यकता है तो सिर्फ़ पूर्वाग्रह की परिधि से बाहर निकल कर सोंचने की …
ओमप्रकाश अमृतांशु
हम cartoondhun व्यंग्य चित्रों की आँगन में आपका स्वागत करते हैं..
Your email address will not be published. Required fields are marked *
Notify me of follow-up comments by email.
Notify me of new posts by email.
संगीतकार मधुकर आनंद सिंगर बन मचा रहे हैं धमाल
ठहाका ! मारते लोग रविन्द्र भारती की दाढ़ी पर
अभिनेता सत्यकाम आनंद का caricature बना
आरा का लाल विष्णु शंकर का कमाल देखो
राजेश भोजपुरिया को मातृभाषा और संस्कृति से जमीनी जुड़ाव
Facebook
© cartoondhun 2019