Artist- omprakash amritanshu
अबकी बार चुनावी बादलों में गरीबी – बेरोजगारी की रडार गायब है । एक नायाब तरीका नेताओं ने अपनाया है । इसबार राष्ट्रवाद का तिलक कर किस्मत आजमाया है । यही मुद्दा – यही रडार है । इसी के सहारे होना बेड़ापार है । खस्ता हाल है । आम जन जीवन परेशान है । वर्चस्व की लड़ाई देख लोग हैरान है ।जमीनी हकीकत कोई बताओ इन्हें । हमारी परेशानी से अवगत कराओ इन्हें । आकाश मार्ग से आते हैं , हमें धूल फांका जाते है । और फिर उड़ जाते हैं फुर से । हम देखते रह जाते हैं शुतुरमुर्ग से । मेरे हाथ मे अखबार देख शायराना अंदाज में बोलने लगा बटेसर ।
हमने कहा – क्या बात है ! आज तो मिजाज कुछ शायराना सा हो रहा है । उसने कहा – पूछो ना हालात हमें क्या – क्या बना डाला । वार्ना आज इंजीनियर तो हम भी कहलाते पर वक्त ने बेरोजगारी में आवारा बना डाला ।।
ओढ़ ली गई या ओढा दी गई है । यूं कहें तो इस पर बम बरस दी गई है – मैंने पूछा। बटेसर बोला – देखो भाई ! ये चुनाव जीतने के हथकंडे हैं । इसीलिए तो कहते हैं राजनीति के कीड़े बहुत गंदे है । हर एक सख्श दुसरों को छीछालेदर करेगा । सरकार बनाने के लिए उसी को सहयोग करेगा । वोट हमसे लेकर जाएगा । हमारे पकड़ से गायब हो जाएगा । मलाई खुद खायेगा । सरकारी बंगले में एशोआराम से जीवन बिताएगा । हमारी सुखी रोटी पर नजर गड़ाएगा । गरीब तो गरीब हीं रह जाएगा । लेकिन इनको मालामाल कर जाएगा । हम बने हैं सिर्फ वोट देने के लिए । इन नेताओं के गोल – मटोल बातों में फंसने के लिए । समस्या को घूँघट ओढा दिया जिन्होनें । हमें भी भों – भों – भों करने में लगा दिया इन्होंने ।
जैसे बेरोजगार रहना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है । कारण कि इनकी महिमा अपरंपार है । बापू ने कर्ज ले – ले कर पढ़ाया । इन नेताओं की नीति ने बेरोजगार बनाया । चुनाव आने के साथ सितारें जमीन पर हैं, और हम अपनी आँसू बहाने में लीन ।
हमारे रडार के पकड़ में आओगे साहब । बचकर कबतक कहाँ जाओगे साहब ।हमारी गरीबी – बेरोजगारी की समस्याओं को गायब कर दी आपने चुटकियों में ।अनर्गल मुद्दा भर दी हमारे मुट्ठियों में ।अबकी बार ना समझें तो फिर संभल ना पाओगे । परिणामतः मलाई वाली कुर्सी फिर कभी हासिल ना कर पाओगे ।
किसी के चिल्लाने की आवाज आई । बटेसरा .. बटेसरा… । आरे बटेसर । बटेसर सुना । उसके बापू उसे बुला रहे थे । शायद खेत में जाने के लिए । बटेसर भागा अपनी बापू की आवाज के पीछे । हम पड़े रहें अखबार के काले अक्षरों के पीछे ।
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ओमप्रकाश अमृतांशु
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