रविन्द्र भारती / Artist- Omprakash Amritanshu
सोशल मीडिया में ठहाका ! मारते लोग रविन्द्र भारती की दाढ़ी पर । काले से सफेद हुए रंगो की रूहानी पर । ये रंग भी क्या चीज है ? जवानी और बुढ़ापे की बीज है । जबतक दाढ़ी और सिर के बाल काली रहे । बरकरार जवानी रहे । जब धीरे – धीरे सफेदी चढ़ती है । जवानी की पानी भी उतरती है । ये कुदरत की परिवर्तन लीला है । जिसपर इंसान को ठहाका मारने को अधिकार मिला है । रविन्द्र भारती की दाढ़ी पर । लोग मार रहे हैं ठहाका अपनी – अपनी बारी पर । क्योंकि ये सफेदी किसी को छोड़ती नहीं है । सभी को गले लगाती है । किसी से मुख मोड़ती नहीं है । रविन्द्र भारती की दाढ़ी , भले दिख रही है नक्शे से बंगाल की खाड़ी । पर , इसमें व्यक्तित्व की सुन्दर रंग है बहुत गाढ़ी ।
ठहाका मारते लोग भी ठहाके की शिकार होते हैं । ये भी कभी – कभी हंसी के पात्र होते हैं । वैसे इसका स्वस्थ्य पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है । लेकिन आजकल लगभग व्यक्ति में इसका अभाव दिखता है । ठहाका मारना यानी जोर से और खुलकर हँसना । अनेक शारीरिक रोगों को अलविदा कहना । विज्ञान भी यही कहता है कि इसके सामने कोई नही टिकता । ठहाका रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी को बढ़ाता है । covid-19 कोरोना जैसे खतरनाक बीमारियों को भी दूर भगाता है । मन को शांत रखता है । अच्छी नींद दिलाता है । दाढ़ी ठहाके लगवा रही है रविन्द्र भारती की । लॉफ्टर थेरेपी करवा रही है हम सभी की ।
योग शास्त्र भी यही कहता है । हमें ठहाका मारने को सही ठहराता है । चेहरे की बढ़ जाती है निखार , हँसो खुब खुलकर बुढ़ा हो या बिमार । इसके साइड इफ़ेक्ट नही होते , जो हँसते हैं , रहते हैं खिले – खिले । रविन्द्र भारती के दाढ़ी के बहाने , अपनी इम्यूनिटी बढ़ा रहे हैं लोग । जो अपनी होंठों को नही हिला रहे हैं वही हैं बकलोल ।
ज़िला आरा बिहार के रविन्द्र भारती रंगमंच के उम्दा कलाकार रह चुके है । कलाकार के साथ पत्रकार भी । एक समय था जब आरा के हर बच्चों के जुबान पर रविन्द्र भारती का नाम होता था । हर एक बाल कलाकार इनके साथ अपने उज्ज्वल भविष्य के सपने देखा करता था । ठहाका लगाता । इनके साथ-साथ अभिनय करने को आतुर रहा करता ।
आज 18 अगस्त को रविन्द्र भारती का जन्मदिन है । हम इनके स्वस्थ रहने की कामना ठहाका लगाकर करते है । वैसे सोशल मीडिया पर तो लोग ठहाका लगा हीं रहे हैं । इनके दाढ़ी के बहाने गुदगुदा हीं रहे हैं ।
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ओमप्रकाश अमृतांशु
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