Sonu Sood / Artist - Omprakash Amritanshu
जेठ की तपती सड़कों पर सोनू सूद को नायक से महानायक की भूमिका में किसने नहीं देखा ? यह सवाल ‘कौन बनेगा करोड़पति ‘ में भी पूछ जा सकता है । उत्तर देने के लिए चार options इस प्रकार हो सकते है – a. सिंहासन पर बैठे राज नेताओं ने b. जोड़ – तोड़ कर वोट बटोरने वाले ने c. नफरत की आग भड़का कर मानव समाज को बांटने वालों ने d. ब्रेकिंग न्यूज बेचने वाले सेल्समैनों के समूहों ने । निसंदेह सोनू सूद से जुड़ा यह उलझा हुआ सा options है । लेकिन , कोरोना काल का यह मैटर बहुत ही femus है । एक तरफ नायक नहीं महानायक सोनू सुद सड़कों पर । दूसरी ओर नेताओं की नजर अपनी – अपनी सेहतो पर ।
इंसानियत बहुत बड़ी चीज होती है । यही इंसान की असली ताबीज होती है । इसे जो पहन लेता है , उसका नाम सबके दिलों में छप जाता है । प्रेम – भाव का प्रतीक , ये ताबीज ईश्वरीय प्रतिबिंब बन जाता है ।
सोनू सूद का इंसानियत भाव , देश के हर इंसान पर डाला प्रभाव । संकट में फंसे प्रवासी मजदूरों का दर्द पहचना । एक ऎसा महानायक जिसने सबको अपना माना । ये सोच कर की खजानों के ढ़ेर पर बैठने से क्या फायदा ? दुःख में डूबे हुए मन को बाहर ना निकाला, तो इंसान होने का क्या फायदा ?
सोनू सूद का प्रदेश पंजाब है और मोगा जन्मस्थान । 30 जुलाई 1970 को जन्म लिया एक अच्छा इंसान । प्राध्यापिका मां की आंचल में खेलते – कूदते – पढ़ते जवान हुए । आगे की पढ़ाई करने सीधे नागपुर पहुंचे । इंजिनियर की डिग्री हाथ में , मगर मन अभिनेता बनने के साथ में । मां से मांगा एक वर्ष का समय । निकल पड़ा संघर्ष करने बिना डर – भय ।
दिल में हजारों सपने लिए मुंबई के लिए भरा उड़ान । यह सोच कर कि एक दिन बनेगी मेरी भी खास पहचान । इंजीनियर सोनू सूद चल पड़े संघर्ष की राहों में । घूमते रहे मायानगरी की गलियों की बाहों में । मॉडलिंग और फिल्मों में करियर बनाने की चाह थी । यही एक ख्वाहिश थी , जिससे दिल में मुहब्बत बेपनाह थी ।
धीरे – धीरे संघर्ष के दिन बीते । सोनू सूद अपनी पहली तेलगू फ़िल्म ‘कालज़घर’ में पादरी की भूमिका में दिखे । इस तरह 1999 से फिल्मी सफ़र की शुरूआत हुई । संघर्षशील जीवन में गजब की प्रभात हुई । सन् 2000 में फिल्म ‘हैंड्स अप!’ मिली जो तेलुगू भाषा में थी । हिन्दी में भी काम मिले अब यही आशा थी ।
अब नायक सोनू सूद को सन् 2002 में शहीद-ए-आज़म हिन्दी फिल्म मिली । भगत सिंह की भूमिका से होंठों पर हँसी खिली ।अब क्या था ? हिन्दी फ़िल्मों की लाइनें लगने लगी । जोधा अकबर जैसी फिल्में भी झोली में भरने लगी । फिल्मफेयर में सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला । दिल बाग – बाग हुआ ।
फ़िल्म दबंग में छेदी सिंह खलनायक को तो सबने देखा था । आई आई एफ ए से सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार भी झटका था । अब तक लगभग पचास फ़िल्मों में नायक – खलनायक का अभिनय कर चुके हैं । चुनौतीपूर्ण कार्य की चुनौती स्वीकार चुके हैं ।
लॉकडाउन काल में जब हम घरों में छिपे थे , तब सोनू सूद सड़कों पर निकले थे । उन प्रवासी मज़दूरों के मसीहा बनकर । जो चिलचिलाती धूप में अपने घरों को लौट रहे थे पैदल चलकर । भूखे पेट सिर पर सामान , कन्धे पर बच्चों की नन्ही जान । पूरा देश देख रहा था । अपनी पथराई आँखों को सेक रहा था । कोरोना संकट में भटक रहे थे मज़दूर । अपने घर जाने को हो चुके थे मजबूर । सरकार ने भी अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली । इनके संकट पर चुप्पी साध ली । सोनू सूद की अन्तरात्मा कराह उठी । इन मज़दूरों के आँसू पोंछने के लिए जाग उठी ।
महानायक बन उठ खड़े हुए सोनू सूद । इन्हें घर भेजने के लिए निकल पड़े सड़कों पर खुद । एक – एक प्रवासी मज़दूरों को ढूँढ निकाला । सभी के आँसु पोंछ बस में बैठा डाला । सरकार देखती रह गई , अपने आप में सिमटती रह गई । बस – ट्रेन और हवाई जहाज़ से बिलखते मज़दूरों को वापस भेजा उनके घर । जो भूखे – प्यासे भटक रहे थे दर – दर ।
नायक से महानायक बनने का ये तरीक़ा अनोखा बेमिसाल है । सोनू सूद का यह कार्य जैसे देश के भाल पर कुमकुम का टीका लाल है ।
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ओमप्रकाश अमृतांशु
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