Artist- Omprakash Amritanshu अजब कुर्सी - गजब खेल , देख भाई देख तमसा देख । ये लोकतंत्र है । जिसका मूलमंत्र है कुर्सी यानी सत्ता । क्योंकि सत्ता की चाबी यही देती है । निर्बल से निर्बल व्यक्ति को ताकतवर बना देती है ।
अजब कुर्सी – गजब खेल , देख भाई देख तमाशा देख । ये लोकतंत्र है । जिसका मूलमंत्र है कुर्सी यानी सत्ता । क्योंकि सत्ता की चाबी यही देती है । निर्बल से निर्बल व्यक्ति को ताकतवर बना देती है । इसपर बैठते हीं व्यक्ति की शान बढ़ जाती है । आदर सत्कार और मान में कई गुना बढ़ोतरी हो जाती है । इस पर काबिज व्यक्ति की बात सभी सुनते हैं । उसके दिखाये सपनों में हम भी लीन हो जाते हैं । ये नही यो कुछ नही । समाज में आपकी कोई पूछ नहीं ।
इसे पाते हीं दिमाग चढ़ जाता है सातवें आसमान पर । वार्ना , मिट्टी की परत चढ़ जाती है ज्ञानियों के ज्ञान पर । असली व्यकितत्व की पहचान है यही । शान और सम्मान है यही । कुर्सी हीं आपके दागदार व्यकितत्व को पवित्र बनाती है । आपके छवि को निखार कर महान बनाती है ।
पूछो साध्वी प्रज्ञा से । पिछले दिनों 7 जून को NIA के अदालत में पेश हुई । ढ़ाई घंटे तक खड़ी रही क्यों । क्योंकि उन्हें जो कुर्सी मिली थी गंदी और छोटी थी । कोर्ट को भी ध्यान नही रहा कि अब साध्वी सांसद बन चुकी है । Member of parliament का सदस्य हो चुकी है । अब उन्हें बड़ी और ऊंची कुर्सी चाहिए ।
एक तो इन कुर्सियों की खेल भी अजब निराली है । दूसरा कि छोटे और बड़े को अलग – अलग कर डाली है । ये हमारा है और वो तुम्हारा । हर जगह इसी की तो है सहारा । ये नही तो जीवन व्यर्थ है । अगर है तो हर चीज आपके समर्थ है ।
ये कृपालु है और दयालु भी । जब इसकी कृपा बरसती है लोग होते हैं मालामाल । जब कृपा न हो तो उठाने लगते हैं हजारों सवाल । अर्श से उठाकर फर्श पर पटक देती है । लालू जैसे रईसों को जेल में भर देती है । ये जिसपर मेहरबान हुई , उसकी गिरेबान ऊँची दुकान हुई । कानून भी झुक जाता है इसके नीचे , पड़ जाते हैं सारे आरोप फीके ।
प्रदेश में सरकार बदली है । नए – नए चेहरे नए लोग सत्ता पर आसीन हुए हैं । किसको कौन सी कुर्सी मिली , उसकी हैसियत उजागर हुए हैं । यानी इसके माध्यम से आपका व्यकितत्व बनता है , न कि आपके जरिये इसकी अहमियत । इसकी अहमियत ना पूछो , इसकी हैसियत ना पूछो भाई । ये खेलती है बहुत निराली खेल , इसकी खासियत ना पूछो भाई ।
ये गजब तमाशा दिखाती है । दुःखित मन को हरा – भरा कर जाती है । डिमोशन भी यही करती है और प्रमोशन भी । जीवन की सबसे खास चीज है । इसके स्वाद भी बहुत लज़ीज है । इसे पाने की टीस में कितनी पीड़ा है ना पूछो । इसे पाकर जो आनन्दित हुए हैं उनसे जाकर पूछो । नामुमकिन को मुमकिन कर देती है पल में । इसलिए तो दलबदलू भाग कर आते हैं दूसरे दल में ।
ये जो कुर्सी है इसे कम मत समझना । कभी इसे आंकने की कोशिश मत करना । इसपर बैठते हीं निर्बल दबंग हो जाता है । फिर , समाज में अहम रोल निभाता है । देखने मे निर्जीव जैसी । परंतु महसूस करो तो ये है एक अत्यंत पावरपुल जीव ।
ऐसी तंत्र है कुर्सी जिसके बिना लोकतंत्र नही । लोकजीवन को सँवारती है । सोये हुए भाग्य को जगाती है । इसके बिना हम हम नही , तुम तुम नही । ये है तो भाव है । जीवन में बहाव है । जो इस पर सवार है , उसके जीवन में सदाबहार है । इसकी महिमा अपरंपार है । निष्कर्ष कि इसके तार जुड़े हुए है हमसे । यही हमारे मूल जीवन की सार है ।
जिसे जैसे हीं कुर्सी मिली , उसकी मनोकामना वैसे हीं पूरी हुई । आप अपनी भी मनोकामना पूरी करो । उस तक पहुँचने की यत्न करो । बहुत बढ़िया तमाशा दिखाती है भाई । जीवन की हताशा दूर भगाती है ।
लेकिन एक बात हमें आज तक समझ मे नही आई । महात्मा गाँधी ने क्यों इसका परित्याग किया । क्यों इसके मोहपाश से अपने आप को अलग – थलग किया । सोंचिएगा जरूर ।
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ओमप्रकाशअमृतांशु
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bahut khub likha hai yeh opji . khursi ka khel bhi ajab hai.
धन्यवाद
Bahut Badhiya.
धन्यवाद आशीश जी
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