Artist - Omprakash Amritanshu
हाड़ – माँस का सूखा हुआ पुतला पर अटूट धैर्य है उसमें ।
कितने चट्टानपहाड़ों के पहाड़टूट कर गिरे उसके ऊपरमुँह से आह !ना ऊफ !निकलताझेलता रहा वह सभी कोअपने ऊपरलगता है थोड़ा सा ऊखड़ा-ऊखड़ापर अटूट धैर्य है उसमें ।
सूखा पेंड़ हैपर जड़ को कोई ऊखाड़ न सकाबेयारों का बवंडर नतमस्तक हैगरजता हुआ बादल भी डरा ना सकाहज़ारों झूरियों का बसेराउसका चेहरापर अटूट धैर्य है उसमें ।
विश्वाश की डोर से बाँध रखा हैउसने अपने आपकोकोई माप लेजिगर का पैमानाऔर उसके संताप कोहर अड़चनों से जकड़ा पड़ा हैहुआ ना कभी चिथड़ापर अटूट धैर्य है उसमें ।
सत्य है कि ग़रीब हैदरिद्र भी लेकिन चरित्र का पवित्र हैवर्दी वालाना ही कोई राजनेताना दलालमित्र हैअपनी सुखी रोटी खाताकिसी से ना कहतादु:खों का दु:खड़ापर अटूट धैर्य है उसमें ।
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ओमप्रकाश अमृतांशु
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Lovely write. I enjoyed the description of both human beings and trees in the same poem. Yes Patience is a a greata attribute with them.
धन्यवाद भाई ।
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